may14

शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2014

advice for married couples in hindi




कैसे बचें पति-पत्नि आपस की लड़ाई से...... 

दोस्तों,
कल्पना कीजिये  आप एक car के driver हैं ,और अपनी कार को आराम और अच्छे से road पर चला रहे हैं ! अचानक ,सामने से एक बेकाबू truck आता हुआ दिखता है ! आप तुरंत horn बजाते हैं ,light देते हैं ! फिर भी वो लगातार आपकी ओर चला आ रहा है ! अब आप क्या करेंगे ?  
आप भी उसी speed से बेकाबू होकर उस ट्रक की तरफ ,उसके सामने जायेंगे या तुरंत side में अपनी car को दबाएंगे ,उस बेकाबू ट्रक को बगल से निकल जाने देंगे ,उसे रास्ता देंगे ?

जाहिर सी बात है finally उस बेकाबू ट्रक को side देंगे ,है ना ? तो यही काम हम हमारी शादीशुदा जिंदगी में क्यों नहीं करते ?

देखिये , छोटी -मोटी लड़ाई झगड़ा ,तकरार ,प्रेम -प्यार जीवन में धूप -छाँव की तरह है ,जो जरुरी भी है ! लेकिन कभी कभी पति-पत्नी के बीच की बहस कब गम्भीर लड़ाई का रूप ले लेती है ,पता ही नही चलता ! तू-तू मैं-मैं कब अपनी सीमा लांघ जाती है ,समझ नहीं पाते !
फिर होता यह है कि दो बेकाबू ट्रक अपने अहंकार की रफ़्तार से आमने -सामने आकर टकराते हैं ,जोरदार भिड़न्त होती है और finally एक गम्भीर दुर्घटना ,है ना ?

एक बेकाबू ट्रक के सामने आने पर हमें हमारी गाडी को side  करना है ,न कि उस ट्रक से जाकर भिड़ जाना है ,जब यह विवेक हम रखते हैं ,तो यही विवेक पति-पत्नी अपने आपस की लड़ाई में क्यों नहीं रखते ? एक नाराज लड़ता हुआ पति या पत्नी भी उस बेकाबू ट्रक की  तरह ही होते हैं , जिनका अपनी भावनाओं ,शब्दों ,शालीनता के ब्रैक पर पैर नहीं होता है ! बेकाबू ट्रक कितना नुकसान करेगा और खुद भी कितना दुर्घटनाग्रस्त होगा ,कितना टूटेगा ,कह नहीं सकते ! उसी तरह आपस की लड़ाई कितना बड़ा रूप ले लेगी ,मुँह से कोनसी ऐसी बात निकल जाएगी जो सामने वाले के दिल को छलनी कर देगी ,आपका कोनसा व्यंग,बोली सामने वाले को कितना आहत कर जाएगी ,कह नहीं सकते !
कई बार ये टूटफूट ,मरम्मत योग्य होती है ,जिसे हम sorry बोलकर ,उपहार और प्यार की ग्रीस लगा कर सही कर सकते हैं ! लेकिन कई बार ये टूटफूट इतनी गम्भीर और गहरी होती है कि गाडी का वो हिस्सा ही टूट जाता है ,मरम्मतयोग्य भी नहीं रहता , रहता है तो सिर्फ पछतावा !

कहा भी है कमान से निकला तीर और मुँह से निकले शब्द कभी वापस नहीं आते !

जिंदगी के राजपथ पर भी ऐसी परिस्थिति आने पर कि साथ वाली गाडी बेकाबू हो रही है ,दुर्घटना कर सकती है ! तो क्यों नहीं हम अपनी गाडी की अहंकार की speed कम करके और विवेक के ब्रेक लगा कर सम्भावित दुर्घटना को होने से रोक सकते हैं !

बहुत मुश्किल होता है किसी बहस या लड़ाई में अपने पर काबू रखना ! फिर भी कोशिश तो कर ही सकते हैं ! गृहस्थी की लड़ाई में पीछे हटना आपकी बुजदिली नहीं है ,बड़प्पन है ! बड़प्पन अपने घोंसले को बचाने के लिए !

दो बलशाली हाथियों की लड़ाई का खामियाजा जंगल को भुगतना पड़ता है ! उसी तरह माँ-बाप की लड़ाई के दुष्परिणाम मासूम बच्चों को सहने पड़ते हैं ! बुरी तरह रोजाना लड़ने वाले माता-पिता के बच्चे  एकाकी ,गम्भीर ,विद्रोही ,अधिकतर हीं भावना से ग्रस्त ,सच्चे प्यार और स्नेहिल वातावरण के भूखे होते हैं !

मुश्किल तो बहुत है पर असम्भव नहीं कि उस एक क्षण जो लड़ाई के लिए जिम्मेदार है ,से हम अपने को अलग कर लें ! जो होता है एक क्षण या पल में होता है ! हम सजग होकर उस पल के दायरे से ही अपने को अलग कर लें ! जैसे ही सामने वाला साथी बेकाबू होकर लड़ने लगे ,लगे कि लड़ाई गम्भीर रूप ले सकती है ! तुरंत कमरे से बाहर निकल जाएँ ,चुप हो जाएँ ,परिदृश्य से हट जाएँ !

न नौ मन तैल होगा और न राधा नाचेगी ! जब सामने कोई होगा ही नहीं तो लड़ने वाला किससे लड़ेगा ? गुस्से,लड़ाई का ज्वार उतरने पर मिल कर प्यार से फिर अपनी परेशानियों पर विचार किया जा सकता है !

अहँकार करने तो नहीं देगा पर फिर भी धैर्य और संयम से हम अपनी गृहस्थी की गाडी को दुर्घटना से बचा सकते हैं ! जीवन के लम्बे सफ़र पर उसे सहजता और सफलता से ले जा सकते हैं ! अपने स्वयं के लिए नहीं तो अपने मासूम बच्चों के लिए कोशिश तो की ही जा सकती है ,है ना ?

डॉ नीरज यादव,बारां 


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शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

Happy valentine day in hindi...



मेरा प्यार......

दोस्तों,

प्यार..... एक रूहानी अहसास ..... एक मादकता .....एक नशा ,   जिसे शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता ,है ना ? 

college time  में लगभग सभी को प्यार होता है ,मुझे भी हुआ ! कई आशिकों की प्रेयसी यथार्थ होती है जबकि कुछ की मेहबूबा उनकी कल्पना में रहती है ,मेरी भी कल्पना में ही थी ! हकीकत में वैसी कोई मिली ही नहीं !

ख़्वाबों की मलिका  का एक फायदा यह भी होता है कि जैसे चाहे  आप उसे सँवार सकते हैं ,निखार सकते हैं ,प्यार कर सकते हैं !

दोस्तों, यहाँ मैं बात कर  रहा हूँ  विशुद्ध प्यार की , आत्मिक प्रेम की ,दिल से दिल की ,   न कि आज की तरह fast food love की ,जिसे खाया , पिया ,हाथ पोंछे  और ख़तम ! वो प्यार जो जिस्मानी नहीं रूहानी होता है , उस प्यार की !

teen age और hormone का उफान अपने शिखर पर ,  ऐसे में दिल कब ,  किसके लिए , कहाँ और कैसे मचल जाए ,  कह नहीं सकते  ,है ना ?

दुनिया की भीड़ में अचानक कोई चेहरा ख़ास,अपना सा लगने लगता है ! उसे बार -बार देखने को ,उसके बारे में सोचने को जी चाहता है ! एक अच्छा खासा इंसान बला का शायर बन जाता है ! शेर और गजल उसके मुँह से ऐसे बाहर निकलती हैं जैसे गोमुख से गंगा ,
नींद उड़ जाती है ,भूख मर जाती है ,कुछ सुनाई नहीं पड़ता  , मन खोया खोया  सा रहता है ,बिना बात मुस्कुरा देता है ,दोस्तों और सखियों के ताने भी मन में हिलोर पैदा कर देते हैं ,चाँद से दोस्ती हो जाती है ,और भी पता नहीं क्या क्या होता है ,  ऐसे में मन में, जिस्म के हर कतरे में शायरी का जन्म होता है !  मेरे भी हुआ ,मुलायजा फरमाईये ----


मेरी भी एक प्रेमिका थी ,
ख्वाबों में आया करती थी !
अपने मन की बातों को ,
मुझे हौले से सुनाया करती थी !
हंसती थी तो लगता था कि ,
फूल जमीं पर बिखर रहे हैं !
उसके दुपट्टे की छुअन से ,
अरमान मेरे भी निखर रहे हैं !
बड़े अजीब से दिन थे वो ,
जब डाँट भी अच्छी लगती थी !
ख़्वाबों में जो करता था तुमसे ,
वो बात भी सच्ची लगती थी !
पहलु में हौले से आकर तुम ,
जब पलकों को झुकाया करती थीं !
महसूस कर उस पल की रुमानियत ,
चाँदनी भी शरमाया करती थी !
बड़े अजीब से दिन थे वो ,
जब रातें लम्बी हो जाती थीं !
कब मेरे ख्वाबों में आकर ,
तुम पहलू में मेरे सो जाती थीं !
तुम्हारे स्पर्श से आल्हादित ,
मैं बेसुध सोया सा रहता था !
सुबहो शाम दिन रात हमेशा ,
मन भी खोया सा रहता था !
हाँ ,ये सच है कि वजूद तुम्हारा ,
हक़ीक़त नहीं एक सपना था !
लेकिन ये भी क्या कम है कि ,
वो सपना भी मेरा अपना था !

दोस्तों दिल की बाते हैं , जितनी की जाएँ कम हैं , अंत में अपने इस शेर से अपनी दिल की बात कहता हूँ ---

बड़ी मुद्दत के बाद आज गजल कही दिल ने ,
कल रात मेरा मेहबूब ,ख्वाब में आया था मेरे !

डॉ नीरज यादव "साहिल " 

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रविवार, 9 फ़रवरी 2014

advice for human being in hindi





करें विश्वास ,पर विवेक के साथ 


दोस्तों,
दुनिया में गणित की तरह हमेशा 2+2=4  नहीं होते हैं ! एक अच्छा आदमी जिंदगी भर अच्छा ही रहे ,जरुरी नहीं ! वहीं  एक खराब ,बुरा इंसान जिंदगी भर बुरा ही बना रहे ,यह भी जरुरी नहीं !
हम इंसान हैं ,भावनाओं,इच्छाओं से भरे हुए इंसान ,कोई मशीन नहीं कि जिसमे एक programme set कर दिया तो वो जिंदगी भर वैसे ही चलेगी ! ऊपर वाले ने हमें सोच-विचार की शक्ति दी है ,अपना लाभ-हानि देखने का विवेक दिया है ! वहीं  काम ,क्रोध ,लोभ,मोह,वासना,अहंकार, जैसे भावों को भी हमारे मन में स्थापित किया है ! हम एक जीवन्त रचना हैं ,पत्थर की मूर्ति नहीं ,जो एक बार जिस रूप में बन गई ,हमेशा वैसी ही रहेगी !

हमारा मन पल पल बदलता है ! किसी इंसान के मन में क्या चल रहा है कोई नहीं बता सकता ! भेड़ की खाल में कई भेड़िये दिखते हैं ! वहीं  नारियल के कड़क खोल के अंदर मीठी नरम गिरी भी होती है !

कहने का आशय कि हम आँख मूंद कर किसी पर विश्वास न करें ! ऊपर वाले ने हमें विवेक दिया है ,सोचने की क्षमता दी है ! हम किसी भी इंसान पर कोई ठप्पा नहीं लगा सकते हैं हमेशा के लिए ! ईमानदार आदमी हमेशा ईमानदार ही रहे ,जरुरी नहीं,  वहीं बेईमान भी कभी ईमानदार से ज्यादा ईमान वाला हो सकता है ,परिस्थिति पर निर्भर है !

आम मीठा होता है ,पर शुरुवात में वही आम (कच्चा आम -कैरी ) खटाई से भरपूर होता है ! समय और परिस्थिति के साथ रूपांतरित होकर खटास ,मिठास में बदलती है ! हम यह नहीं कह सकते कि ये तो खट्टा है ,कभी मीठा नहीं हो सकता ! हो सकता है ,परिस्थिति पर निर्भर है ! साधू शैतान हो सकता है ,डाकू संत हो सकता है !

मैं यह नहीं कहता कि हम रिश्तों को ,सम्बंधों को शक़ की नजरों से देखने लगें ,बस थोडा विवेक बनाये रखें ! आज जो हमारा लंगोटिया यार है ,कल जानी -दुश्मन भी हो सकता है ! हमारा मन पल पल बदलता है ,विचार बदलते हैं !

हम यानि मनुष्य उस पुल की तरह हैं ,जिसमे एक तरफ देवत्व,अच्छाई है वहीं दूसरी तरफ असुरता,बुराई है ! उस पुल की ढलान कब किधर हो जाए ,कह नहीं सकते ! परिस्थिति पर निर्भर है ! 
24 घंटों में हमारे अंदर देवत्व भी जागता है ,वहीँ असुरता भी पनप जाती है ! 

हर चमकती चीज सोना नहीं होती ! क्यों न हम अपने विवेक के दायरे को इतना व्यापक रखें कि कोई भटका अगर सुधर कर वापस आना चाहे तो हम दिल खोल कर उसका स्वागत कर सकें ! वहीं अगर किसी अपने ने हमारे भरोसे की पीठ पर खंजर मारा हो ,तो उसे बेधड़क अपने दिल से बाहर भी कर सकें ! rigid न हों ,है ना ?

वैसे भी कहा है ,सावधानी हटी ,दुर्घटना घटी ! यही बात हमारे सम्बंधों पर भी लागू होती है !
सही है कि विश्वास पर समाज चलता है ,बस उस विश्वास को विवेक की कसौटी पर थोडा कस लें ,तो ज्यादा अच्छा हो ,है ना ?

डॉ नीरज यादव 


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