may14

शुक्रवार, 5 सितंबर 2014

Re-Overview of HAPPY TEACHER'S DAY...



HAPPY TEACHER'S DAY...
  दोस्तों,
 आज शिक्षक दिवस पर आप सभी को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनायें ! 
दुआ है की जिंदगी एक अच्छे और RESPONSIBLE  TEACHER की तरह आपको जिंदगी मे अच्छे अच्छे अनुभव और ज्ञान दे ! 

TEACHER  वो नहीं होता जो स्कूल या कॉलेज की चार दिवारी के अंदर आपको किताबों का ज्ञान कराता  है !  शिक्षक शिक्षा देता है ,लेकिन गुरु ज्ञान देता है !  और दोस्तों गुरु की महत्ता तो भगवन से भी ऊँची मानी गई  है !  लेकिन गुरु की शिक्षा से कही ज्यादा जरूरी है शिष्य की पात्रता ! अगर आप मे काबिलियत है ,सीखने का जज्बा है मेहनत करने का माद्दा है ,सच्चा समर्पण है ,निष्ठा है तो एक मिटटी का गुरु भी आप को कहीं ज्यादा काबिल बना सकता है ! गुरु अपना ज्ञान हर student को बराबर ही देता है लेकिन ये शिष्य की पात्रता है की वो उस ज्ञान को कितना ग्रहण करता है ! 
संसार की हर वस्तु और घटना आप को ज्ञान और राह दिखाती है ! अवधूत दत्तात्रेय के चींटी ,मक्खी, गणिका जैसे 24 गुरु थे ! ज्ञान तो कही भी मिल सकता है ,लेने वाला होना चाहिये !     गुरु एक नाव की तरह होता है जो  संसार के भंवर रूपी सागर मे आपको सुरक्षित एक किनारे से दुसरे किनारे तक पार लगाता है !

दोस्तों पहले   गुरु शिष्य का संबंध आत्मिक होता था ,गुरु ना सिर्फ किताबी ज्ञान देता था बल्कि अपने student के व्यक्तित्व का निर्माण भी करता था ,students के मन मे भी अपने गुरु के प्रति आदर और सम्मान होता था ! लेकिन आज परिपेक्ष्य बदल गए हैं !  शिक्षा सेवा नहीं अब व्यवसाय हो गई है ! teacher भी अब गुरु जैसे नहीं (सब नहीं पर अधिकतर ) व्यापारी जैसे हो गए हैं , जो की ----rupee/hour के हिसाब से पढ़ाते हैं ! student का कोर्से पूरा करना ही जिनका मकसद है , उसकी गलतियों को सुधारने ,उसको अच्छे संस्कार देने का  ना तो उनके  पास समय है और ना ही इच्छा !
आज ना teacher के मन मे अपने students के लिए वो अपनापन है और ना हीं students के मन मे  गुरु के लिए वो सम्मान और अदब ,है ना?
लेकिन आज भी कुछ गुरु हैं जो गुरु की सच्ची गरिमा को बरकरार रखे हुए हैं ,और कुछ शिष्य भी हैं जो अपना शिष्यत्व बनाये हुए हैं ! 
एक जमाना था जब रास्ते मे गुरु के मिलने पर शिष्य दौड़कर    उनके पास जाता था , उनसे मिलता था   और एक आज का समय है की अगर teacher रास्ते मे सामने से आ भी रहा होगा तो student मिलना तो दूर नमस्ते करना भी जरूरी नहीं  समझेगा ! पीड़ादायक है पर यही हकीकत है ! आज teacher 's day पर आइये थोडा आत्म चिंतन करें ! और कोशिश करें ना सिर्फ एक अच्छा शिष्य बनने की बल्कि एक गरिमामय ,अच्छा गुरु बनने की भी ! 

डॉ नीरज यादव 
बाराँ 


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गुरुवार, 28 अगस्त 2014

Re-Overview of happy ganesh chaturthi

    



निर्विघ्नं कुरु में देव  सर्व कार्येषु सर्वदा .....



दोस्तों ,
गणेश चतुर्थी  के पावन अवसर पर आप सभी को हार्दिक मंगल कामनाएं ! 

दुआ है   
रिद्धि सिद्धि के दाता,विघ्नहर्ता ,सुखकर्ता ,सदबुद्धि के दाता गजानन
        achhibatein के सभी सुधि पाठक जनों  और 
                                         इस संसार के सभी प्राणियों को 
                                                             अपने आशीष से नवाजें !

सृष्टी के सर्वप्रथम पूज्य देव गणेश  जी हैं !  गजानन जी रिद्धि -सिद्धि ,शुभ -लाभ ,बुद्धि के दाता हैं !  गणेश जी का हर अंग प्रत्यंग हमे जीने का सही ढंग बताता है ! 

गज  मुख --गज अर्थात ब्रह्म !  बड़ा सर बड़ी सोच को दर्शाता है !हमे जीवन मे हमेशा बड़ा और श्रेष्ठ ही चिंतन करना चाहिये !

चार भुजाएं --ये हमे चार विशेषताओं को अपने पुरुषार्थ से पाने का इशारा करती हैं , वे हैं --समझदारी ,इमानदारी ,जिम्मेदारी  और बहादुरी !  ये 4 भुजाएं धर्म ,अर्थ ,काम  और मोक्ष की भी परिचायक हैं !

इन 4 भुजाओं मे गजानन 4 चीजें धारण करते हैं --पाश ,अंकुश दन्त और वर !

पाश --मोहनाशक है !  हमे हमेशा सजग रहना चाहिये , कभी भी किसी भी परिस्थिति मे मोह ग्रस्त नहीं होना चाहिये , अपना विवेक बनाये रखना चाहिये ! 
अंकुश --यानी रोक !  हमे अपनी बुरी आदतों ,आलस्य, प्रमाद ,लोभ ,अहंकार ,वासना  इर्ष्या पर अंकुश रखना चाहिये ! 
दन्त --दुष्ट नाशक ,शत्रु विनाशक है !  हमे अपने उपरोक्त आलस,डर,तनाव, भय जैसे शत्रुओं का विनाश कर देना चाहिये !
वर --यानी अभिष्ट की प्राप्ति !  अच्छाई की ,सफलता की ,श्रेष्टता की ,सुख की प्राप्ति का वर हमे पाना चाहिये ! 

लम्बोदर --अच्छी पाचन शक्ति होने के कारण गणेश जी को लम्बोदर भी कहते हैं !  जो सारी  सृष्टी की सभी चीजें अपने उदर मे समा लेते हैं ! हमे भी लम्बोदर सा होना चाहिये  , दूसरों की कमी ,बुराई ,अपनी अच्छाई ,अहंकार , कटाक्ष ,जैसी बातों को अपने अन्दर ही रखना चाहिये !

सूप  जैसे कान -- सूप असली को  नकली से अलग करने का कार्य करता है !  चीजो को छान कर ,कचरा हटा कर फिर उन्हें रखता है !  हमे भी सूप की तरह अच्छी और श्रेष्ठ बातों को ही अपने कान के अन्दर जाने देना चाहिये !  गलत और खराब बातों को बाहर ही फटक देना चाहिये ! 

वाहन मूषक (चुहा)-- चूहा विवेचक ,विभाजक ,भेद्कारक और बुद्धि का सूचक है !
गणेश अर्थात----विवेक             चुहा अर्थात ----बुद्धि 
चुहे  पर गणेश जी का बिराजना यह दर्शाता है की हमे भी अपनी बुद्धि को विवेक तले ही रखना चाहिये !  क्योंकि  बांसुरी बनाने वाली बुद्धि कब बन्दूक बना दे ,पता नहीं ! 

पुनः आप सभी को गणेश चतुर्थी की शुभ कामनाएं ..........

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बुधवार, 4 जून 2014

Re-Overview of The secret of happy married life





                      
सुखी दाम्पत्य जीवन का रहस्य 

एक व्यक्ति संत कबीर के पास पहुंचा और उनसे प्रश्न किया की   -'सुखी दाम्पत्य जीवन का क्या रहस्य है ?'    कबीर बोले -अभी थोड़े समय मे समझाता हूँ !   कुछ समय बाद कबीर ने अपनी पत्नी को आवाज लगाई--'यहाँ बड़ा अँधेरा है ,जरा दीपक तो रख जाओ !   उनकी पत्नी आईं और एक दीपक चोखट पर रख गईं !   उस आदमी को बड़ा आश्चर्य हुआ की दिन के समय मे काफी प्रकाश होते हुए भी कबीर ने पत्नी को बुलाया और वो भी बिना किसी प्रतिवाद के दीपक रख कर चली गईं !   थोड़ी देर बाद पत्नी ने दोनों के लिए भोजन परोसा !  जब दोनों ने खाना आरम्भ किया तो कबीर की पत्नी ने पुछा --;खाने मे कोई कमी तो नहीं है ?    कबीर ने कहा ,  बिलकुल नहीं ,खाना बहुत ही स्वादिष्ठ बना है !    उस आदमी को फिर आश्चर्य हुआ की सब्जी मे नमक कम होते हुए भी कबीर ने भोजन की तारीफ़ की ! 
अब संत कबीर ने उस व्यक्ति को सम्बोधित करते हुए कहा ---अब समझ मे आया की सुखी दाम्पत्य जीवन का क्या रहस्य है ?
वो रहस्य है की हम एक दुसरे के साथ तालमेल बिठाना सीखें !   एक दुसरे की कमियाँ निकाल कर उसको नीचा दिखाने  के बजाए   यदि हम उसके गुणों को सराहें ,  उसकी तारीफ़ करें तो गृहस्थी एक तपोवन बन जाए ! 

सुखी दाम्पत्य जीवन के सूत्र ----
  • एक दुसरे का सम्मान करें ! क्योंकि जो सामने वाले को देंगे वो ही आपको वापस मिलेगा ! 
  • आपस मे विश्वास करना सीखें ! शक की बुनियाद पर सुखी गृहस्थी की इमारत कभी खड़ी नहीं होती !
  • 100% perfect कोई नहीं है ,आप भी नहीं ! इसलिए अपने spouse की कमियों को नजर अंदाज करना सीखें !
  • spouse को अपना quality time दें !      कभी कभी हम अपने काम मे इतने व्यस्त हो जाते हैं की हम अनजाने ही अपने जीवनसाथी को नजरंदाज करने लगते हैं !    उसके हिस्से का समय अपने काम मे खर्च करने लगते हैं !   वो आपसे बात करने के लिए तरस जाते हैं ,धीरे धीरे उनकी ये तड़प आक्रोश मे बदल जाती है !  फिर इसका परिणाम लड़ाई ,बहस के रूप मे सामने आता है ! इसलिए  अपने साथी को समय दें !
  • जब किसी कारण से दूसरा गुस्से मे हो ,बहस के मूड मे हो तो आप वहां से हट जाएँ ,या चुप हो जाएँ ,ये बात कहने मे जितनी आसान है ,अमल करने मे उतनी ही मुश्किल ,है ना ? फिर भी कोशिश करें ,क्योंकि गुस्से की  आग को आग से नहीं बुझाया जा सकता ,उसके लिए सब्र और शांति का पानी जरूरी है ! 
  • सुन्दरता तलाशें लेकिन तन की नहीं ,मन की गुणों की !  क्योंकि आदमी का सम्मान उसके रंगरूप से नहीं उसके गुणों से होता है ! कागज का गुलाब कितना भी सुन्दर हो ,लेकिन भगवान को अर्पित तो असली गुलाब ही होता है !
  • अपने गृहस्थी के पहिये पर जीवनसाथी की प्रशंसा और तारीफ़ की ग्रीस समय समय पर लगाते रहे ताकि गृहस्थी का पहिया बिना आवाज के smoothly चलता रहे !

थियोडोर पारकर ने अपने विवाह केसमय  अपनी पत्नी के साथ अपने सम्बन्ध  स्नेहपूर्ण और दोस्ताना रखने के लिए एक आचार सहिंता बनाई!उसने शादी के  दिन ही अपनी diary मे 10 निश्चय लिख लिए और संकल्प किया की वो दोनों इनका कड़ाई के साथ पालन करेंगे ---

1 .आवश्यक कारण ना हो तो जीवनसाथी की इच्छा का कभी विरोध ना करना !
2 . उसके प्रति अपने सभी कर्तव्यों का उदारता से पालन करना !
3 .  कभी कटु व्यवहार ना करना !
4 . उसके स्वाभिमान को किसी भी प्रकार ठेस नहीं पहुँचाना !
5 .  उस पर कभी हुकुम नहीं चलाना ,आखिर वो आपका जीवनसाथी है   गुलाम नहीं !
6 .  उसकी शारीरिक निर्मलता को प्रोत्साहन देना ! तारीफ़ करना !
7 .  उसके काम मे हाथ बटाना!
8 .  उसके छोटे मोटे दोषों को नजरअंदाज करना !
9 .  उसके प्रति अपने दायित्व और कर्तव्यों का पालन करना !
10 . उसके लिए भी परमात्मा से प्रार्थना करना ! आखिर दो पहिये की गाडी मे दोनों पहियों का सही होना जरूरी है ,है ना ?

और सबसे जरूरी बात ,अपने आपस के झगड़ों मे ,आपस के मतभेदों मे कभी किसी तीसरे को शामिल नहीं करना ,चाहे वो कोई भी हो ,आखिर ये आपके आपस का मामला है ! 
डॉ नीरज यादव 
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शुक्रवार, 2 मई 2014

sex advice for married couples in hindi



कैसे पाएं सम्बन्धों में तृप्ति ....

दोस्तों,
आज सलाह विवाहित साथियों के लिए ! मेरे पास कई married patients आते हैं ,जिनमे से अधिकतर इस समस्या से ग्रसित होते हैं जिसकी बात आज हम करने जा रहे हैं ! 

पति-पत्नि  एक गाडी के दो पहिये हैं और कोई भी गाडी तब ही अच्छे से चल सकती है जब उसके दोनों पहिये एक जैसे चलें ,एक साथ मंजिल पर पहुंचें ,दोनों में हवा का दवाब समान हो ,है ना ? ये बात संबंधों के परिपेक्ष्य में कही जा रही है !

देखिये गृहस्थाश्रम की ईमारत 4 तरह की नींव पर खड़ी होती है ! वे हैं --धर्म ,अर्थ, काम (sex ) और मोक्ष ! जिसमे काम यानि sex की बडी महती भूमिका  होती है !
sex में अच्छे सम्बन्ध एक अच्छी ओर खुशहाल गृहस्थी क आधार होते हैं ! एक दूसरे का दिल से ध्यान रखना ओर शारीरिक तौर पर एक दूसरे को तृप्त करना पति-पत्नी का पारस्परिक कर्तव्य होता है  !

 ये गाडी (अंतरंग संबंधों की ) डगमगाती तब है जब एक पहिया 100 की speed पर दौड़ता है दूसरा 40 की speed पर ही रह जाता है ,या बीच मे puncture हो जाता है ,उसकी हवा निकल जाती है ! आप उपमाओं को समझ गये होंगे ! और अगर ऐसा अधिकतर होने लगे तो गाडी या तो damage हो जाती है या ज्यादा समय तक अच्छे से नहीं चल पाती !

मुझे topic के subject को cover करने के साथ साथ शब्दों की मार्यादा का भी ध्यान रखना है क्योंकि मेरे सुधी पाठक युवा,बच्चे,बुजुर्ग,महिला,पुरुष सभी हैं !

अधिकतर patients क कहना होता है कि संबंधों के दौरान एक तृप्त हो पाता है ओर दूसरा प्यासा ही रह जाता है ! फिर इसका असर पूरे परिवार पर देखने को मिलता है ! लड़ाई-झगड़ा , मनमुटाव ,कटाक्ष ,हीनता आदि भाव एक अच्छी खासी गृहस्थी को बिगाड़ देते हैं !

ज्यादा detail मे नहीं जाऊँगा क्योंकि इस बारे मे आप बहुत कुछ पढ़ चुके होंगे ! वैसे ये समस्या ज्यादातर शादी-शुदा जोड़ों की होती है !

क्या करें कि संबंधों में तृप्ति की अनुभूति दोनों partners को हो ,एक साथ हो ,समान रूप से हो !
वैसे तो ये काम-शास्त्र का विषय है ! महर्षि वात्स्यायन एक पूरा ग्रन्थ इस पर लिख गए हैं ! फिर भी अधिकतर married couple इस परेशानी से जूझ रहे हैं !

आंतरिक संबंध अगर नियमित रुप से ही पूर्णता पर नहीं पहुंच पाएं तो एक समय बाद अतृप्त साथी अपने को ठगा हुआ महसूस करने लगता है ! उसे लगता है कि मुझे तो सिर्फ़ use किया जा रहा है ! इन्हें (?) तो सिर्फ अपनी ही संतुष्टि से मतलब है ! धीरे-धीरे ये भावना अवसाद , कुंठा , उग्रता का भी रुप ले लेती है !  और सम्बन्ध के तुरन्त बाद पीठ फेर कर सो जाना आग मे घी का काम करता है , है ना ?

चलिए भूमिका तो बहुत बन गई ,पर अब  क्या करें कि ऐसी परिस्थिति क सामना न करना पड़े ! दोनों पहिये एक साथ अपनी मन्जिल (चरमावस्था ) पर पहुंचें !

ये बताने के पहले मैं  आपको एक दृश्य दिखलाता हूँ !
olympic की 400 मीटर की race में दो धावक (runner) दौड़ रहे हैं ! बंदूक की गोली की आवाज के साथ दोनो ने एक साथ दौड़ शुरु की ! थोड़ी दूरी तक दोनो बराबरी से दौड़ें ! उसके बाद एक runner अपनी speed बढ़ा कर आगे निकल गया ओर दूसरा थोङा थक कर धीरे दौड़ने लगा ! दौड़ समाप्ति पर एक धावक finish line  को पार कर गया जबकि दूसरा थक कर बीच track पर ही गिर गया , दौड़ भी पूरी नहीं कर पाया ! दोस्तों sex संबंधों की भी कुछ कुछ ऐसी ही कहानी है ,है ना ?

अब क्या करें कि दोनो धावक एक साथ finish line को पार करें ,या कहें एक साथ तृप्ति की ,आनन्द की अनुभूति करें !
करना क्या है बस थोड़ी सी जुगत लगानी होगी ! एक-दो उदाहरण से मैं अपनी बात कहने क प्रयत्न करुँगा उपमाओं मे ,उम्मीद है आप बात के मर्म को समझ लेंगे !

मान लीजिये दो कुएँ हैं अगल-बगल ! एक में पानी आराम से बाहर आ जाता है जबकि दूसरे कुएँ मे पानी कम है ,बड़ी मुश्किल से कभी-कभी थोड़ा पानी बाहर आता है ! ऐसे में क्या करें ! करना क्या है ,दूसरे कुएँ मे एक पानी की मोटर लगा लीजिये ,बटन दबाया पानी का अथाह सैलाब हाजिर ,ठीक है ना ,युक्ति तो लगानी पड़ेगी !

 तो हम बात कर रहे थे धावकों क़ी ,क्या करें कि दोनो runner एक साथ  finish line पर पहुंचें ,वही थोड़ी जुगत लगानी होगी !
करना ये होगा कि दौड़ शुरु होने के समय थकने वाला runner अपनें पैरो मे roller skating लगा ले या साइकिल पर अपने साथी धावक के साथ बराबरी से दौड़े ! और जैसे ही finish line के पास पहुंचें अपने skating या साइकिल को एक तरफ हटा कर अपने 'पैरों ' से दौड़ना शुरु करे ओर साथी के साथ मे साथ साथ finish line को पार करे ! साथी भी खुश ओर दूसरा runner साथी भी !

उम्मीद है आप मेरे कहने का आशय समझ गये होंगे ! ज्यादा detail मे बताऊँगा तो शिष्टता का उललंघन हो जाएगा !
तो जुगत लगाइये ओर अपने संबंधों की दौड़ को सफ़ल ओर सुहानी बनाईये !
आगे आप खुद समझदार हैं !

मेरा ये छोटा सा प्रयास है शालीनता के दायरे मे रह कर अपनी बात आप तक पहुंचाने का ! आपके comments ही ये बता पायेंगे की मै अपनें इस प्रयास मे कितना सफल हुआ या नहीं ?
आपके valuable comments क इंतज़ार रहेगा !

डॉ नीरज यादव ,बारां 

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मंगलवार, 22 अप्रैल 2014

Cause of Failure in hindi



असफलता का कारण.... 


दोस्तों ,
जीवन में असफलता के कई कारण होते हैं ,उनमे से  एक है डर ,नई शुरुवात करने का डर, मेहनत करने का डर ,आराम छोड़ने का डर ,हारने का डर आदि ! ये कविता मैंने 1998 में लिखी थी !

* असफलता का कारण *
मैं नहीं बन सका कुंदन क्योंकि 
भट्टी में तपने से डरा हूँ !
अंकुर बन मैं नही उग पाया 
धरती में गलने से डरा हूँ !!
चाहा सुमन बन गंध फैलाऊँ 
चाहा औरों को सुख पहुँचाऊँ !
लेकिन सुमन बन नहीं उग पाया 
शूलों में खिलने से डरा हूँ !!
चाहा बहुत मैं घट बन जाऊं 
त्रषितों की मैं प्यास बुझाऊँ !
नहीं बन सका घट मैं क्योंकि 
कुटने और पिटने से डरा हूँ !!
धारा के संग में बहुत बहा हूँ 
अनुकूलताओं में ही मैं पला हूँ !
विपरीत धारा में नहीं बह पाया 
प्रतिकूलताओं से भी में डरा हूँ !!
आये संघर्ष कई राह में 
उनको मैंने पीठ दिखाई !
आई कई बाधाएं पथ में 
उनसे भी है ठोकर खाई !!
फिर भी लक्ष्य को पा न सका मैं 
कदम बढ़ाने से ही मैं डरा हूँ !!

हम कब तक डरते रहेंगे ,नई शुरुवात करने से ,कोशिश करने से ,मेहनत करने से ,प्रतिकूलताओं से जूझने से ,कब तक ? डरेंगे तो डरते ही रहेंगे हमेशा ,इसलिए उठें साहस के साथ ,डराएं अपने डर को अपने साहस और हिम्मत से ,झटक दें अपनी हताशा और निराशा ! और उठ खड़े हों अपनी मंजिल पाने के लिए ,आखिर डर के आगे ही तो जीत है ,है ना ?

डॉ नीरज यादव ,बारां 

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शनिवार, 5 अप्रैल 2014

Every single vote is important...




हर एक वोट जरुरी होता है... 

एक बार एक राजा ने अपने शहर के बीचों बीच एक बहुत बड़ा तालाब खुदवाया ! जब तालाब बन कर तैयार हो गया तब उसने शहर में मुनादी करवाई कि गर्मियां आने वाली हैं और इससे बचने के लिए हर शहरवासी को अपने घर से एक लोटा पानी लाकर  इसमें डालना है ! सबके सहयोग से इसे पूरा भरना है ,पानी का storage करना है ,ये हर शहर वासी की नैतिक जिम्मेदारी है ! और चूँकि आप सब दिन में अपने खेतों और दूसरे जीविका कमाने के काम ने लगे रहते हो इसलिए ये एक लोटा पानी आप रात को भी डाल सकते हो ,इसके लिए राजा ने एक तारीख मुक़र्रर कर दी ,जिस दिन रात को सभी शहरवासियों को अपने हिस्से का एक लोटा पानी उस तालाब में डालना था ! 
वो रात भी आई ,और जैसा की होता है ,लगभग हर शहरवासी ने सोचा कि जब सारा शहर ही उसमे पानी डालने जा रहा है तो मेरे एक लोटा पानी नहीं डालने से क्या फर्क पड़ेगा ,कौन अपनी नींद खराब करे ,तान कर सोते हैं !  
अगले दिन सुबह जब राजा ये देखने आया कि तालाब कितना भरा है ,उसे बड़ा आश्चर्य और दुःख हुआ ,तालाब बिलकुल सूखा था ! उसमे एक भी लोटा पानी नहीं डाला गया था ! जाहिर है उस पूरी भीषण गर्मी में उस शहर के लोगों को पानी की भारी कमी का सामना करना पड़ा और वो राजा से अपनी इस परेशानी को दूर करने का कहने की हिम्मत भी नहीं कर पाये ,किस मुँह से कहते ,उन्होंने अपना फर्ज जो नहीं निभाया था !

दोस्तों ,
मेरे कहने का आशय आप समझ ही गए होंगे ,है ना ? हमारे देश में चुनाव होने वाले हैं ,हम अपनी नई सरकार चुनने वाले है !  हम सभी देश में व्याप्त महंगाई,भ्रष्टाचार,घूसखोरी ,महिला सुरक्षा  जैसे अनगिनत मुद्दों से पीड़ित हैं ! 

हम सभी एक अच्छी और ईमानदार ,जिम्मेदार ,जनहितेषी सरकार चाहते हैं ,स्वच्छ छवि वाले इंसान को चुनना चाहते हैं ! अपने  देश को संवारना चाहते हैं ! लेकिन विडम्बना है कि कोई भी राजनेतिक दल दूध का धुला नहीं है ,कोई भी दल भ्रष्टाचार और महंगाई को खत्म नहीं करने वाला ,किसी को भी चुने , आम आदमी का कुछ ख़ास भला नहीं होने वाला ,ये जानते हुए भी हम नादान भारतीय किसी चमत्कार की आस में यह सोच कर फिर किसी को चुन लेते हैं की शायद अब कुछ बदलाव हो जाए ,कुछ राम राज्य सा वातावरण हो जाए ,जबकि हम अंदर से जानते हैं कि होना जाना कुछ नहीं है ! अबकी बार भी हम इसी उम्मीद में वोट देंगे की इस बार हम आम भारतीयों की सारी समस्याओं ,परेशानियों का अंत हो जाएगा ,हर आदमी सुखी हो जाएगा ,हर गरीब को खाना नसीब होगा ,हर लड़की महफूज रहेगी ,गैस,आलू,प्याज पेट्रोल सस्ता हो जाएगा , भ्रष्टाचार और महंगाई जड़ से ख़तम हो जाएंगे ! वो सुबह कभी तो आएगी ………………।  
 देश की ऐसी परिस्थिति में हममे से कई लोग सोचते हैं ,कि क्या वोट देना ,क्यों देना ,जबकि कुछ होने वाला नहीं है ! सारे उम्मीदवारों में एक भी हमारी पसंद का नहीं है ! सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं !

दोस्तों हम अपना वोट दें या नहीं कोई ना कोई तो चुना ही जाएगा ,और जो चुना जाएगा वो आप भी जानते हैं कैसा होगा ,क्योंकि आप और हम जैसे समझदार और जिम्मेदार लोग तो वोट करने निकलेंगे नहीं ,और जो वोट करेंगे वो पार्टी विशेष या उस व्यक्ति  विशेष के विशेष लोग होंगे ! ये सोच कर कि एक तरफ कुआँ है और दूसरी तरफ खाई है ,हमारी पसंद का साफ़ छवि वाला कई है ही नहीं तो क्या वोट करना !

दोस्तों ये ही हमारी सबसे बड़ी गलती है ! ये ठीक है कि हम सफ़ेद नहीं ले सकते पर कम सफ़ेद और काले में से कम सफ़ेद को तो चुन ही सकते हैं ! और हर उम्मीदवार  भी खराब नहीं है ! देश में अभी भी कुछ चंद नेता और सांसद हैं जिनका व्यक्तित्व और काम काबिले तारीफ़ है ,हम उन्हें चुन सकते हैं !

कुछ हैं जो हैं तो बहुत अच्छे ,सेवा भावी पर वो अपने प्रचार में अनाप-शनाप धन खर्च  नहीं कर सकते ,हम उन्हें चुन सकते हैं !

चुनाव अप्रैल में शुरू हो रहे है ! अप्रैल जाना जाता है अप्रैल फूल बनाने के लिए ! और हम भारतीय कई बार अप्रैल फूल बने हैं ,लेकिन इस बार नहीं ! 

इस चुनाव में हम जो बीज बोएंगे उसकी फसल हमें पूरे पांच साल काटनी पड़ेगी ! अब ये हमारे ऊपर हैं कि गन्ने को बोएं या धतूरे को !

एक मजबूत गगनचुम्बी ईमारत तभी बनती है जब उसकी एक एक ईंट मजबूती से लगी हो ,और एक मजबूत देश भी तभी बनता है जब उसका हर समझदार और जिम्मेदार नागरिक समझदारी से वोट करता है ! 

एक निवेदन ,इस बार अप्रैल फूल नहीं "पॉवर फूल"(powerful) बनिए ,अपने वोट की ताकत पहचानिये ,सही को चुनिए ! वोट जरूर दीजिये ! 

*मैं भी दूंगा ,तुम भी दो ,अपने मत से बदलें देश को *

अच्छीबातें भी तभी अच्छी लगेंगी जब देश में अच्छी चुनी हुई सरकार होगी ,है ना ?

डॉ नीरज यादव,बारां 


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शनिवार, 22 मार्च 2014

article on stress management in hindi




तनाव का बोझ... 

दोस्तों,

एक बोध कथा है !
एक गरीब ब्राह्मण था ! एक सुबह वो अपने सामान की गठरी अपने सर पर लादे राजपथ से जा रहा था ! तभी वहाँ पीछे से राजा का रथ आ गया ! राजा ने देखा कि एक बुजुर्ग आदमी बोझ उठाये पैदल चल रहा है ! उसने रथ को रोक कर बुजुर्ग ब्राह्मण को रथ पर बैठने के लिए कहा ! ब्राह्मण सकुचाया ,बोला-नहीं महाराज,मैं पैदल ही ठीक हूँ ! राजा ने विनम्रता से कहा ,कोई बात नहीं ब्राह्मण देव ,मैं भी उसी रस्ते जा रहा हूँ ,आपको आपकी मंजिल पर उतार दूंगा ,आ जाइये ! बड़ी सकुचाहट के साथ वो राजा के रथ पर बैठ गया ! थोड़ी देर बाद राजा की उस पर नजर पड़ी तो देखा कि उसने अपनी गठरी को अपने सर पर ही रखा हुआ है ! 

राजा ने कहा --ब्राह्मण देव ,आप अपना ये बोझ क्यों उठाये हुए हैं ! इसे नीचे रख दीजिये ! वो बोला -- नहीं महाराज, आपने मुझ नाचीज इंसान को अपने रथ पर जगह दी ,यह ही बहुत है मेरे लिए ! अब मैं अपनी गठरी भी नीचे रख कर रथ पर और वजन नहीं बढ़ाना चाहता !
राजा मुस्कुराया ,बोला --ब्राह्मण देव ,आप नाहक ही अपने बोझ को उठाने का श्रम कर रहे हैं ! आप इसे नीचे रखें या सिर पर, रथ पर तो यह है ही ! और आपके सिर पर इसे रखने से रथ के वजन में कोई अंतर नहीं आ रहा ! आप नाहक ही अपने को कष्ट दे रहे हैं ! उतार दीजिये इस बोझ को ,नीचे रख दीजिये !

दोस्तों,

क्या आपको नहीं लगता कि हम भी कुछ कुछ उस ब्राह्मण की तरह ही हैं ! हम हर छोटी से छोटी बात में परेशान हो जाते हैं ! दुनिया भर की फ़िक्र ,तनाव ,डर ,काम का बोझ  और भी पता नहीं क्या क्या  अपने ऊपर हावी कर लेते हैं ! हमें लगता है कि अगर हम नहीं करेंगे ,तो होगा ही नहीं ! बड़ी भूल है हमारी 

इस ब्रह्माण्ड को ,पृथ्वी को उस परमपिता ने बनाया है ! आप उसे ईश्वर ,अल्लाह ,जीजस या फिर प्रकृति ही कह लीजिये ! कोई है ,जिसने ये दुनिया बनाई है ,दुनिया की हर चीज बनाई है ! सृष्टि की हर चीज उसके नियमो से बंधी है ! समय से सूरज निकलता है ,समय से पृथ्वी सूरज का चक्कर लगाती है ! हर चीज समय से उसके निर्देशन में होती है !

इस अनन्त ब्रम्हाण्ड में हमारा वजूद क्या है ? और हमारी तथाकथित परेशानियों ,तनावों का वजूद ?

जब कोई Architect किसी मकान का नक्शा बनाता है तो उसे पता रहता है कि कोनसी चीज कहाँ लगानी है ! ईंट कहाँ लगेगी ,टाइल कहाँ लगेगी और झूमर कहाँ लगेगा ! हर चीज उसके दिमाग में स्पष्ट होती है ! 
अब ये ईंट ,टाइल ,और झूमर इसी बात का तनाव लेकर बैठ जाएँ कि पता नहीं हम कहाँ use होंगे ,कहाँ हमें लगाया जाएगा , कब लगाया जाएगा ,हमारा कैसे क्या होगा ! इसी सोच में अगर वो घुलते रहे तो ये उनकी बेवकूफी है ,है ना ?

आँख में पड़ा हुआ छोटा सा तिनका भी संसार से बड़ा दिखाई देता है ! उसी तरह हमारी छोटी सी परेशानी भी हमें पृथ्वी के वजन से ज्यादा भारी लगती है ! रोज के अनगिनत तनाव ,चिंताओं का बोझ हम अकारण ही अपने सिर पर लाद लेते हैं ! 
ऊपर वाले ने  उस परमपिता ने हमें इतना विवेक तो दिया ही है कि हम अपनी तथाकथित परेशानियों को अपने ऊपर लादें या उसी के चरणों में अर्पित कर दें !

कहें ,जैसे मेरा बोझ तेरा ,वैसे ही मेरी परेशानियां भी तेरी ! और वो परमपिता तो कहता ही है कि अरे मेरी नाव पर जब तू सवार है तो तेरी चिंता ,परेशानियां भी तो मेरी ही हैं ! तू क्यों व्यर्थ ही उन्हें अपने दिमाग पर लादे रखता है !

मैं हूँ ना ,अगर माने तो ! एक बार सच्चे मन और खुले अन्तःकरण से अपनी चिंताएं मुझे दे के तो देख !

भगवान् श्री कृष्ण ने गीता में कहा भी है --
कर्ता का अहंकार छोड़ ,सिर्फ कर्म कर ,फल की चिंता मत कर ! तेरे किये से ना कुछ हुआ है ,और तेरे बिना किये भी दुनिया में बहुत कुछ हो गया है ! व्यर्थ ही अपने को तनाव और चिंता में मत रख ! कर्म कर ,सिर्फ कर्म !

दोस्तों मेरा ये लेख तनाव मुक्त हो काम करने के बारे में है ,न की काम न करने के बारे में ! करना तो होगा ही ,उसके बिना चारा नहीं है ,पर बिना तनाव के करें तो ज्यादा अच्छा ,है ना ?

डॉ नीरज यादव ,बारां 


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शनिवार, 8 मार्च 2014

happy womens day in hindi




कड़वी हकीकत...
दोस्तों,
महिला दिवस पर अभी शाम को न्यूज़ सुनी ,पाली (राजस्थान) में नाले में एक नवजात बच्ची का शव मिला ,और ये सिर्फ पाली नहीं बल्कि अधिकतर और बड़े कहलाने वाले आधुनिक शहरों में भी हो रहा है ,बहुत दुखद ! ये सही है कि हम महिला दिवस मना  रहे हैं ,उनकी तारीफ़ भी कर रहे हैं ! कुछ महिलाओं ने वाकई इस समाज में अपना एक अहम् और प्रेरणादायक मुकाम बनाया है ,कुछ जगह हैं जहाँ बच्ची के जन्म पर ख़ुशी मनाई जाती है ,कुछ जगह हैं जहाँ बेटी गर्व का कारण होती है लेकिन ये संख्या न के बराबर ही है ! 

अभी भी इस समाज की कड़वी हकीकत कुछ और ही है ----


कड़वी हकीकत 

हर तरफ मुर्दानगी वहाँ पर छाई थी ,
ये कैसी विपदा आफत वहाँ पर आई थी ,
दो बेटियों का पिता था बैठा सर को पकडे वहाँ 
दादी अम्मा रो रही थी फूट फूट कर जहाँ ,
टूटा फूटा बुझा चिराग पड़ा था वहाँ पर ,
तीन दिन से खाना नहीं बना था जहाँ पर
 उस घर की फिजा में कैसी मनहूसियत सी छाई थी 
क्योंकि उनके घर पर फिर एक बेटी आई थी ,
हर तरफ मुर्दानगी वहाँ पर छाई थी ,

डॉ नीरज यादव 

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शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2014

advice for married couples in hindi




कैसे बचें पति-पत्नि आपस की लड़ाई से...... 

दोस्तों,
कल्पना कीजिये  आप एक car के driver हैं ,और अपनी कार को आराम और अच्छे से road पर चला रहे हैं ! अचानक ,सामने से एक बेकाबू truck आता हुआ दिखता है ! आप तुरंत horn बजाते हैं ,light देते हैं ! फिर भी वो लगातार आपकी ओर चला आ रहा है ! अब आप क्या करेंगे ?  
आप भी उसी speed से बेकाबू होकर उस ट्रक की तरफ ,उसके सामने जायेंगे या तुरंत side में अपनी car को दबाएंगे ,उस बेकाबू ट्रक को बगल से निकल जाने देंगे ,उसे रास्ता देंगे ?

जाहिर सी बात है finally उस बेकाबू ट्रक को side देंगे ,है ना ? तो यही काम हम हमारी शादीशुदा जिंदगी में क्यों नहीं करते ?

देखिये , छोटी -मोटी लड़ाई झगड़ा ,तकरार ,प्रेम -प्यार जीवन में धूप -छाँव की तरह है ,जो जरुरी भी है ! लेकिन कभी कभी पति-पत्नी के बीच की बहस कब गम्भीर लड़ाई का रूप ले लेती है ,पता ही नही चलता ! तू-तू मैं-मैं कब अपनी सीमा लांघ जाती है ,समझ नहीं पाते !
फिर होता यह है कि दो बेकाबू ट्रक अपने अहंकार की रफ़्तार से आमने -सामने आकर टकराते हैं ,जोरदार भिड़न्त होती है और finally एक गम्भीर दुर्घटना ,है ना ?

एक बेकाबू ट्रक के सामने आने पर हमें हमारी गाडी को side  करना है ,न कि उस ट्रक से जाकर भिड़ जाना है ,जब यह विवेक हम रखते हैं ,तो यही विवेक पति-पत्नी अपने आपस की लड़ाई में क्यों नहीं रखते ? एक नाराज लड़ता हुआ पति या पत्नी भी उस बेकाबू ट्रक की  तरह ही होते हैं , जिनका अपनी भावनाओं ,शब्दों ,शालीनता के ब्रैक पर पैर नहीं होता है ! बेकाबू ट्रक कितना नुकसान करेगा और खुद भी कितना दुर्घटनाग्रस्त होगा ,कितना टूटेगा ,कह नहीं सकते ! उसी तरह आपस की लड़ाई कितना बड़ा रूप ले लेगी ,मुँह से कोनसी ऐसी बात निकल जाएगी जो सामने वाले के दिल को छलनी कर देगी ,आपका कोनसा व्यंग,बोली सामने वाले को कितना आहत कर जाएगी ,कह नहीं सकते !
कई बार ये टूटफूट ,मरम्मत योग्य होती है ,जिसे हम sorry बोलकर ,उपहार और प्यार की ग्रीस लगा कर सही कर सकते हैं ! लेकिन कई बार ये टूटफूट इतनी गम्भीर और गहरी होती है कि गाडी का वो हिस्सा ही टूट जाता है ,मरम्मतयोग्य भी नहीं रहता , रहता है तो सिर्फ पछतावा !

कहा भी है कमान से निकला तीर और मुँह से निकले शब्द कभी वापस नहीं आते !

जिंदगी के राजपथ पर भी ऐसी परिस्थिति आने पर कि साथ वाली गाडी बेकाबू हो रही है ,दुर्घटना कर सकती है ! तो क्यों नहीं हम अपनी गाडी की अहंकार की speed कम करके और विवेक के ब्रेक लगा कर सम्भावित दुर्घटना को होने से रोक सकते हैं !

बहुत मुश्किल होता है किसी बहस या लड़ाई में अपने पर काबू रखना ! फिर भी कोशिश तो कर ही सकते हैं ! गृहस्थी की लड़ाई में पीछे हटना आपकी बुजदिली नहीं है ,बड़प्पन है ! बड़प्पन अपने घोंसले को बचाने के लिए !

दो बलशाली हाथियों की लड़ाई का खामियाजा जंगल को भुगतना पड़ता है ! उसी तरह माँ-बाप की लड़ाई के दुष्परिणाम मासूम बच्चों को सहने पड़ते हैं ! बुरी तरह रोजाना लड़ने वाले माता-पिता के बच्चे  एकाकी ,गम्भीर ,विद्रोही ,अधिकतर हीं भावना से ग्रस्त ,सच्चे प्यार और स्नेहिल वातावरण के भूखे होते हैं !

मुश्किल तो बहुत है पर असम्भव नहीं कि उस एक क्षण जो लड़ाई के लिए जिम्मेदार है ,से हम अपने को अलग कर लें ! जो होता है एक क्षण या पल में होता है ! हम सजग होकर उस पल के दायरे से ही अपने को अलग कर लें ! जैसे ही सामने वाला साथी बेकाबू होकर लड़ने लगे ,लगे कि लड़ाई गम्भीर रूप ले सकती है ! तुरंत कमरे से बाहर निकल जाएँ ,चुप हो जाएँ ,परिदृश्य से हट जाएँ !

न नौ मन तैल होगा और न राधा नाचेगी ! जब सामने कोई होगा ही नहीं तो लड़ने वाला किससे लड़ेगा ? गुस्से,लड़ाई का ज्वार उतरने पर मिल कर प्यार से फिर अपनी परेशानियों पर विचार किया जा सकता है !

अहँकार करने तो नहीं देगा पर फिर भी धैर्य और संयम से हम अपनी गृहस्थी की गाडी को दुर्घटना से बचा सकते हैं ! जीवन के लम्बे सफ़र पर उसे सहजता और सफलता से ले जा सकते हैं ! अपने स्वयं के लिए नहीं तो अपने मासूम बच्चों के लिए कोशिश तो की ही जा सकती है ,है ना ?

डॉ नीरज यादव,बारां 


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शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

Happy valentine day in hindi...



मेरा प्यार......

दोस्तों,

प्यार..... एक रूहानी अहसास ..... एक मादकता .....एक नशा ,   जिसे शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता ,है ना ? 

college time  में लगभग सभी को प्यार होता है ,मुझे भी हुआ ! कई आशिकों की प्रेयसी यथार्थ होती है जबकि कुछ की मेहबूबा उनकी कल्पना में रहती है ,मेरी भी कल्पना में ही थी ! हकीकत में वैसी कोई मिली ही नहीं !

ख़्वाबों की मलिका  का एक फायदा यह भी होता है कि जैसे चाहे  आप उसे सँवार सकते हैं ,निखार सकते हैं ,प्यार कर सकते हैं !

दोस्तों, यहाँ मैं बात कर  रहा हूँ  विशुद्ध प्यार की , आत्मिक प्रेम की ,दिल से दिल की ,   न कि आज की तरह fast food love की ,जिसे खाया , पिया ,हाथ पोंछे  और ख़तम ! वो प्यार जो जिस्मानी नहीं रूहानी होता है , उस प्यार की !

teen age और hormone का उफान अपने शिखर पर ,  ऐसे में दिल कब ,  किसके लिए , कहाँ और कैसे मचल जाए ,  कह नहीं सकते  ,है ना ?

दुनिया की भीड़ में अचानक कोई चेहरा ख़ास,अपना सा लगने लगता है ! उसे बार -बार देखने को ,उसके बारे में सोचने को जी चाहता है ! एक अच्छा खासा इंसान बला का शायर बन जाता है ! शेर और गजल उसके मुँह से ऐसे बाहर निकलती हैं जैसे गोमुख से गंगा ,
नींद उड़ जाती है ,भूख मर जाती है ,कुछ सुनाई नहीं पड़ता  , मन खोया खोया  सा रहता है ,बिना बात मुस्कुरा देता है ,दोस्तों और सखियों के ताने भी मन में हिलोर पैदा कर देते हैं ,चाँद से दोस्ती हो जाती है ,और भी पता नहीं क्या क्या होता है ,  ऐसे में मन में, जिस्म के हर कतरे में शायरी का जन्म होता है !  मेरे भी हुआ ,मुलायजा फरमाईये ----


मेरी भी एक प्रेमिका थी ,
ख्वाबों में आया करती थी !
अपने मन की बातों को ,
मुझे हौले से सुनाया करती थी !
हंसती थी तो लगता था कि ,
फूल जमीं पर बिखर रहे हैं !
उसके दुपट्टे की छुअन से ,
अरमान मेरे भी निखर रहे हैं !
बड़े अजीब से दिन थे वो ,
जब डाँट भी अच्छी लगती थी !
ख़्वाबों में जो करता था तुमसे ,
वो बात भी सच्ची लगती थी !
पहलु में हौले से आकर तुम ,
जब पलकों को झुकाया करती थीं !
महसूस कर उस पल की रुमानियत ,
चाँदनी भी शरमाया करती थी !
बड़े अजीब से दिन थे वो ,
जब रातें लम्बी हो जाती थीं !
कब मेरे ख्वाबों में आकर ,
तुम पहलू में मेरे सो जाती थीं !
तुम्हारे स्पर्श से आल्हादित ,
मैं बेसुध सोया सा रहता था !
सुबहो शाम दिन रात हमेशा ,
मन भी खोया सा रहता था !
हाँ ,ये सच है कि वजूद तुम्हारा ,
हक़ीक़त नहीं एक सपना था !
लेकिन ये भी क्या कम है कि ,
वो सपना भी मेरा अपना था !

दोस्तों दिल की बाते हैं , जितनी की जाएँ कम हैं , अंत में अपने इस शेर से अपनी दिल की बात कहता हूँ ---

बड़ी मुद्दत के बाद आज गजल कही दिल ने ,
कल रात मेरा मेहबूब ,ख्वाब में आया था मेरे !

डॉ नीरज यादव "साहिल " 

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रविवार, 9 फ़रवरी 2014

advice for human being in hindi





करें विश्वास ,पर विवेक के साथ 


दोस्तों,
दुनिया में गणित की तरह हमेशा 2+2=4  नहीं होते हैं ! एक अच्छा आदमी जिंदगी भर अच्छा ही रहे ,जरुरी नहीं ! वहीं  एक खराब ,बुरा इंसान जिंदगी भर बुरा ही बना रहे ,यह भी जरुरी नहीं !
हम इंसान हैं ,भावनाओं,इच्छाओं से भरे हुए इंसान ,कोई मशीन नहीं कि जिसमे एक programme set कर दिया तो वो जिंदगी भर वैसे ही चलेगी ! ऊपर वाले ने हमें सोच-विचार की शक्ति दी है ,अपना लाभ-हानि देखने का विवेक दिया है ! वहीं  काम ,क्रोध ,लोभ,मोह,वासना,अहंकार, जैसे भावों को भी हमारे मन में स्थापित किया है ! हम एक जीवन्त रचना हैं ,पत्थर की मूर्ति नहीं ,जो एक बार जिस रूप में बन गई ,हमेशा वैसी ही रहेगी !

हमारा मन पल पल बदलता है ! किसी इंसान के मन में क्या चल रहा है कोई नहीं बता सकता ! भेड़ की खाल में कई भेड़िये दिखते हैं ! वहीं  नारियल के कड़क खोल के अंदर मीठी नरम गिरी भी होती है !

कहने का आशय कि हम आँख मूंद कर किसी पर विश्वास न करें ! ऊपर वाले ने हमें विवेक दिया है ,सोचने की क्षमता दी है ! हम किसी भी इंसान पर कोई ठप्पा नहीं लगा सकते हैं हमेशा के लिए ! ईमानदार आदमी हमेशा ईमानदार ही रहे ,जरुरी नहीं,  वहीं बेईमान भी कभी ईमानदार से ज्यादा ईमान वाला हो सकता है ,परिस्थिति पर निर्भर है !

आम मीठा होता है ,पर शुरुवात में वही आम (कच्चा आम -कैरी ) खटाई से भरपूर होता है ! समय और परिस्थिति के साथ रूपांतरित होकर खटास ,मिठास में बदलती है ! हम यह नहीं कह सकते कि ये तो खट्टा है ,कभी मीठा नहीं हो सकता ! हो सकता है ,परिस्थिति पर निर्भर है ! साधू शैतान हो सकता है ,डाकू संत हो सकता है !

मैं यह नहीं कहता कि हम रिश्तों को ,सम्बंधों को शक़ की नजरों से देखने लगें ,बस थोडा विवेक बनाये रखें ! आज जो हमारा लंगोटिया यार है ,कल जानी -दुश्मन भी हो सकता है ! हमारा मन पल पल बदलता है ,विचार बदलते हैं !

हम यानि मनुष्य उस पुल की तरह हैं ,जिसमे एक तरफ देवत्व,अच्छाई है वहीं दूसरी तरफ असुरता,बुराई है ! उस पुल की ढलान कब किधर हो जाए ,कह नहीं सकते ! परिस्थिति पर निर्भर है ! 
24 घंटों में हमारे अंदर देवत्व भी जागता है ,वहीँ असुरता भी पनप जाती है ! 

हर चमकती चीज सोना नहीं होती ! क्यों न हम अपने विवेक के दायरे को इतना व्यापक रखें कि कोई भटका अगर सुधर कर वापस आना चाहे तो हम दिल खोल कर उसका स्वागत कर सकें ! वहीं अगर किसी अपने ने हमारे भरोसे की पीठ पर खंजर मारा हो ,तो उसे बेधड़क अपने दिल से बाहर भी कर सकें ! rigid न हों ,है ना ?

वैसे भी कहा है ,सावधानी हटी ,दुर्घटना घटी ! यही बात हमारे सम्बंधों पर भी लागू होती है !
सही है कि विश्वास पर समाज चलता है ,बस उस विश्वास को विवेक की कसौटी पर थोडा कस लें ,तो ज्यादा अच्छा हो ,है ना ?

डॉ नीरज यादव 


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मंगलवार, 28 जनवरी 2014

geeta saar in hindi -2



मैंने कहा, कोशिश तो कर …… 


दोस्तों, 
 मेरी post --  करिष्ये वचनं तव ..... को आप सब ने लोकप्रिय पोस्ट के दूसरे पायदान पर सुशोभित किया है ,शुक्रिया दिल से…… 

सच में दोस्तों गीता का उपदेश किसी भी रूप में पढ़ा या सुना जाए ,जीवन की कठनाइयों में राह दिखाने वाला ही होता है ! 

युद्ध के मैदान में जब अर्जुन हताश और पलायनवादी होने लगता है ,तब श्री कृष्ण उसे जो ज्ञान देते हैं ,एक कोशिश की  है उसे अपने शब्दों में पिरोने की ,

कृष्ण कहते हैं -----

उसने कहा मुझसे नहीं होगा 
मैंने कहा ,   कोशिश तो कर !
चलने से पहले रुक जाना 
उठने से पहले बैठ जाना 
बिना किये ही थक जाना 
बिना जिए ही मर जाना 
अरे ! हटा इन मन के भावों को 
कुछ करने की हिम्मत तो कर !
क्यों व्यर्थ समय को खोता है 
कर्म तो करने से ही होता है 
जीवन एक संग्राम बड़ा है 
पग-पग पर व्यवधान खड़ा है !
क्यों मोह-माया में उलझ रहा 
कर्तव्य से क्यों भटक रहा 
आलस-प्रमाद अवसाद का कोहरा 
क्यों तेरे चहुँ ओर लिपट रहा !
दूर हटा अवसाद के तिमिर को 
आशा की ज्योति तो जप 
चल उठ ,खड़ा हो झटक डर  को 
चढ़ा प्रत्यंचा  गांडीव पर !
उसने कहा मुझसे नहीं होगा 
मैंने कहा ,   कोशिश तो कर .....

डॉ नीरज यादव 


दोस्तों जैसा स्नेह आपने मेरी पहली गीता सार पोस्ट  को दिया है ,उम्मीद है उतना ही अपनत्व इस पोस्ट को भी देंगे ,देंगे ना ?


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रविवार, 19 जनवरी 2014

article for teenagers in hindi ...





चढ़ती जवानी , न करना नादानी ...



दोस्तों,
ये post खासतौर  से मेरे युवा साथियों के लिए ,  या यूँ कहें अभी ताजा -ताजा जवान हुए या हो रहे adolescent,teenagers दोस्तों के लिए !

कल्पना कीजिये एक पिता अपने किशोर पुत्र को एक नई bike दिलाता है ! बेटा बड़ी शान और style से अपनी new bike road पर चलाता है ! जाहिर है speed से भी ! और अगर सामने से कोई मोहतरमा आ जाये तो style और speed दोनों ही बढ़ जाती हैं , स्वाभाविक ही है !

मान लीजिये ऐसे में drive करते करते road पर एक slope या ढलान आ जाती है ! आप क्या करेंगे ? उसी तेज speed से bike चलाते रहेंगे या speed control करेंगे ,brake को use करेंगे ,speed को कम करेंगे ?

जाहिर है brake की help से speed control करेंगे ,ताकि कहीं गिर न जाएँ ,लग न जाए ,है ना ?

और अगर चिकनी ,फिसलनभरी ढलान पर भी उसी  style और speed से तेज चलते रहे तो बहुत सम्भावना है कि bike slip कर जाए ,bike और biker दोनों को लग जाये !

दोस्तों, चढ़ती उम्र भी उसी नयी  bike की तरह है जिसे speed और ज्यादा speed से आप चलाना चाहते हैं ! स्वाभाविक ही है ,ये उम्र ही ऐसी है जब शरीर में male harmons का ज्वार उफान पर आने को होता है ! चंचल मन सारे बंधन तोड़ हर सीमा से परे जाना चाहता है ! अज्ञात को जानने की इच्छा अपना सिर उठाती है ! एकान्त अच्छा लगता है ! दोस्तों,हमउम्र के साथ कल्पना के जगत में विचारना भाता है ! विपरीत-लिंग आकर्षित करता है ! मन में भावनाओं ,इच्छाओं ,कल्पनाओं का ज्वालामुखी फूटने के कगार पर होता है ,दुनिया मुट्ठी में महसूस होती है ! समाज के नियम तोड़ना जवान होने का अहसास कराता है ! चढ़ती जवानी या यूँ कहें आती युवावस्था रूपी नई bike speed की सारी हदों को तोड़ देना चाहती है ! हर अनुभव से गुजर जाना चाहती है !  Internet, mobile,  Whatsapp जैसे gadgets इस यौवन की आग में घी का काम करते हैं ! और ऐसे में जवान नयी bike कब राजपथ से main road  से उतर कर  कीचड भरी पगडण्डी में ,गड्ढों  में ,उबड़-खाबड़ रस्ते पर उतर जाती है पता ही नहीं पड़ता !
और जब पता पड़ता है तब तक देर हो चुकी होती है ,bike फिसल कर गिर चुकी होती है ! कई बार repair हो पाती है ,कई बार repair भी नहीं हो पाती ,कबाड़ हो जाती है !

क्या करें कि bike भी अच्छे से चलायें और गिरें भी नहीं ! 
करना क्या है ,अपने विवेक रूपी brake पर पाँव रखिये ! जहाँ लगे कि bike गलत जा रही है ,या आगे गड्ढा है ,फिसलन है ,विवेक रूपी brake लगा लीजिये ,गिरने से ,फिसलने से बच जायेंगे !

एक बात और ,इस चढ़ती उम्र में किसी बड़े का समझाना ,बतलाना ,फूटी आँख नहीं सुहाता , पीछे बेठे पिता या बड़े भाई की नसीहत कि थोडा धीरे चलो ,ढंग से चलाओ ,सम्हाल कर चलाओ , बिलकुल अच्छी नहीं लगती ! है ना ?  क्या करें harmons का प्रभाव ही ऐसा है !

फिर भी भावनाओं ,कल्पनाओं, इच्छाओं के उफान को जो विवेक रूपी बाँध से बांधे रखता है ,वही सच्चा युवा है !
bike चलाते हुए सामने फिसलन भरा रास्ता आ जाए ,तो एक समझदार biker क्या करता है ,जाहिर है सम्हाल कर ,धीरे से ,कम speed से balance बना कर उस रस्ते को , उस फिसलन को ,जहाँ गिरने की सम्भावना ज्यादा है ,पार करता है ! फिर सही और साफ़ highway आने पर वापस speed maintain कर लेता है !

दोस्तों ये teenage का रास्ता {from thirteen through nineteen (13–19)yrs.} भी कुछ कुछ वैसा ही फिसलन भरा है ! जिसमे हमारे (जीवन की ) सड़क पर गिरने की सम्भावना ,बिगड़ने,भटकने ,बहकने की सम्भावना सबसे ज्यादा होती है ! और विडम्बना कि  इसी उम्र में हम नई-नई bike चलाना सीखते हैं !
नया-नया driver , नयी bike ,खुली आमंत्रित करती सड़कें ,सारा सरंजाम जुटा होता है गिरने का !
पर एक सच्चा युवा वो ही है ,जो ऐसे में भी ,इतने प्रलोभनों में भी अपने विवेक रूपी brake की सहायता से सफलता पूर्वक इस फिसलन भरे रस्ते को पार करता है ! और भविष्य की जिंदगी की race में अव्वल आने के लिए अपने स्वयं और अपनी bike को fit and maintain रखता है !

अपनी जवानी के घोड़े को विवेक के चाबुक तले रखिये ! फिर देखिये ,ये ऊर्जा,उत्साह ,सेहत से भरपूर घोडा आपको जिंदगी के अनेक राजपथों पर ,मंजिलों पर ले जाता है ! 

कहीं ऐसा न हो इस कच्ची उम्र में किया गया एक गलत काम जिंदगी भर की पीड़ा दे जाए ! थोडा सा मजा जिंदगी की सजा न हो जाए !

एक शेर मुझे याद आ रहा है ----

कुछ ऐसे भी मंजर हैं , तारीख की नज़रों में 
लम्हों ने खता की थी ,सदियों ने सजा पाई !!



आगे आप खुद समझदार हैं ,है ना ?

डॉ नीरज यादव, बारां 


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शुक्रवार, 10 जनवरी 2014

Contemporary story in hindi





विडम्बना... 



सालों पहले की बात है ! एक बहुत बड़ा जंगल था लेकिन जिसमे कोई पेड़ नहीं था ! सारे जानवर और पक्षी वहाँ रहा करते थे ! लेकिन तेज धुप,बारिश ,आंधी से उन्हें बड़ी परेशानी होती थी ! खाने -पीने के लिए भी कुछ ढंग का नहीं मिल पाता था ! 

एक सुबह सबने देखा कि जंगल के बीचोंबीच किसी पेड़ का एक अंकुर उग आया है ! सब उत्सुकतावश उसके चारों तरफ खड़े हो गए ! अचानक उन सबको उस कोंपल में से एक आवाज सुनाई दी --भाइयों,बहनों  ,मुझसे आप सबकी परेशानी देखी  नहीं गई इसीलिए मैं धरती से बाहर आया हूँ ! आप मुझे खाद ,पानी, संरक्षण देना और फिर एक समय बाद मैं बड़ा होकर आप सबको फल,छाँव, लकड़ी ,रहने की जगह दूंगा !

जानवर और पक्षी खुश ! 
सुनहरे भविष्य की आस में वे बड़े जतन से उस पेड़ को बड़ा करने लगे ! यह देख कर और दूसरे कई पेड़ों के अंकुर भी जमीन से बाहर आ गए !
उनका भी वही वादा …… 
जंगलवासी जानवर,पक्षी और खुश कि चलो अब तो इतने सारे सेवादार पेड़ हो गए हैं कि सबको रहने की जगह, लकड़ी, फल ,छाँव सब कुछ मिलेगा ! 
समय गुजरा ,सारे पेड़ बड़े हुए, फलदार भी हुए ,घने भी हुए ,लेकिन विडम्बना यह हुई कि वो जमीन से इतने ऊँचे और घने हो गए कि बेचारे मासूम जानवर उन तक चाह कर भी नहीं पहुँच पाये ! उस पर भी कोढ़ में खाज ये हुई की कुछ गिद्ध,चील ,चमगादड़ जैसे पक्षियों ने उन पर डेरा डाल  लिया ! और गलती से भी अगर कोई जानवर उन पेड़ों के पास आने की कोशिश भी करता तो ये उसे बड़ी बुरी तरह से डरा कर भगा देते !
बेचारे जानवर सालों की तपस्या और इन्तजार के बाद भी वहीं के वहीं ! समय के थपेड़ों से वे सब रूखे व्यवहार वाले ,वहमी ,जल्दबाज हो गए ! समय गुजरता गया !

एक दिन सुबह अचानक सबने देखा कि सालों बाद फिर एक मासूम सा अंकुर जमीन से बाहर आया है ! फिर सब जानवर उसको घेर कर खड़े हो गए !  कुछ आश्चर्य ,खुश गुस्से ,कुछ शक़ ,कुछ हिराकत से वहीँ कुछ आशा भरी नजरों से उसे देखने लगे !उस अंकुर से उन्हें एक आवाज सुनाई दी !  भाइयों ,मैं एक बहुत छोटा सा "आम" के बीज का अंकुर हूँ ! आप लोगों की परेशानी को मैं इतने सालों से जमीन के अंदर से देख रहा था ! बाहर आने की कोशिश भी कर रहा था ! लेकिन इन घने पेड़ों का झुण्ड इतना विशाल हो चूका है ! कि किसी आम से पेड़ को पैदा ही नहीं होने देता ! फिर भी आप सब की पीड़ा और प्रार्थना कि वजह से शायद परमात्मा ने मुझे धरती से बाहर आने का मौका दिया है ! अगर आप मुझे सहयोग,खाद,पानी देंगे तो मैं आपके काम आने की कोशिश करूँगा !

सालों से धोखा खाये ,ठगे गए जानवरों की मिली-जुली प्रतिक्रिया हुई ! कुछ ने कहा --अरे छोड़ो ! ये भी उन घने पेड़ों में से एक ही होगा ,क्या भरोसा !
कुछ ने कहा इसे अभी जमीन से ही उखाड़ दो ताकि एक और घने पर स्वार्थी पेड़ से हमें मुक्ति मिले !
लेकिन कुछ बुजुर्ग जानवरों ने कहा कि नहीं ,इसे भी एक मौका दो ,समय दो , क्या पता ये अपने वचन का पक्का हो ! वैसे भी अभी तो इसकी आँखों में हमें सच्चाई और मासूमियत दिख रही है !
बाकी जानवरों ने उसे एक मौका देना स्वीकार कर लिया !

विडम्बना अब शुरू होती है ! अभी उस छोटे से आम के अंकुर को जमीन से बाहर आये 5-7 दिन ही हुए थे ,2-4 नए पत्ते ही उसमे और खिले थे ! कि एक दिन सुबह  जैसे ही उसने आँखें खोलीं ,देखा कि लोमड़ी ,लकड़बग्गा ,कौआ,सियार ,गीदड़ आदि जानवर उसे घेर कर खड़े हैं ! उसकी आँख खुलते ही सवालों की बौछार उस पर होने लगी !
हमने तुम्हारा वजूद स्वीकार किया ,अब बताओ --
फल कब दोगे ?
छाँव कब दोगे ?
लकड़ी कब दोगे ?
हम तुम पर अपने घोंसले कब बनाएंगे ?
कब? कब ? कब ?

नेपथ्य से यह सब देख रहे बूढ़े हाथी ने ठंडी सांस भर कर कहा ,प्रभु ,क्या विडम्बना है ! जो पेड़ फलों से लड़े पड़े हैं ,घने हैं ,टनो-टन लकड़ी वाले हैं ! उनसे पूछने की किसी की हिम्मत नहीं है !और यह बेचारा 5-6 दिन का पौधा ,इनके सवालों और आकांक्षाओं के बोझ तले दब कर कहीं समय के पहले दम न तोड़ दे !
क्या विडम्बना है !

डॉ नीरज यादव 
बारां