"माँ" तो आखिर माँ होती है .....
विशाल मरुथल ,सगन अगन
अग्नि सी बरसाता गगन
या तेज हवा ,घनघोर घटा
जग प्रलय सा बरसता सावन
मावस का वो गहन अँधियारा
दूर तक न दिखे उजियारा
पास आती वो शेरों की दहाड़
महसूस होती साँपों की फुफकार
खतरे असुरक्षा से भरा ये जीवन
पग पग पर संग्राम है हर क्षण
मुझे पता है ये सब संकट
फिर भी इनसे मै बच जाऊँगा
पा के तुम्हारी ममता की पतवार
जीवन भंवर से मैं तर जाऊँगा
भले कठिन हो कितना जीवन
चाहे हो कठिनाईयाँ अपार
निकालेगा इस भंवर से सकुशल
"माँ " मुझे तेरी ममता और प्यार
लगे बच्चे को गर चोट जरा सी
उसकी पीड़ा माँ को होती है
जन्मदात्री हो या जगजननी
माँ तो आखिर माँ होती है !
डॉ नीरज .......
-------------------------------------------