may14

शनिवार, 27 जुलाई 2013

मनःस्थिति बदलें, परिस्थिति अपने आप बदल जाएगी ….



मनःस्थिति बदलें, परिस्थिति अपने आप बदल जाएगी …. 


दोस्तों,

ऐसा अधिकतर होता है कि हम अपने वर्तमान से , आज से सन्तुष्ट नहीं होते हैं ! हमें लगता है कि आज हम जहाँ हैं उससे कहीं ज्यादा अच्छी जगह ,और ज्यादा ख़ुशी भरे माहोल में हो सकते थे !
 चिन्ता,तनाव ,परेशानी ,कामों का  बोझ ,जिम्मेदारियां  इन सबको हम अपने ऊपर हावी कर लेते हैं ! हमें लगता है कि सारी परेशानी और दुःख तो हमारे पास ही है ,  उस दूसरे आदमी को देखो ,कितना खुश और सुखी है ! हमें दुसरे की थाली में ज्यादा घी दिखता है ! लेकिन विडम्बना है कि वो दूसरा आदमी भी वैसा ही सोचता है ,जैसा आप  सोच रहे हैं !  उसे भी आपकी थाली में ही ज्यादा घी दिख रहा है !

हम सब अपने वर्तमान से दूर सुनहरे और सुख भरे भविष्य कि मृग-मरीचिका में  भटक रहे हैं ! हम सुख ,शांति ,संतोष  इन सब को बाहर , दूसरी जगह पाना चाहते हैं ! लेकिन ये सब बाहर कभी मिलते नहीं , मिल ही नहीं सकते  क्योंकि सुख शांति संतोष बाहरी नहीं   आंतरिक कारणों पर निर्भर होते हैं !

इस मृग-मरीचिका में हम दूसरे की जगह लेना चाहते हैं ,और दूसरा हमारी ! और फिर जगह भी बदल जाती है लेकिन मनःस्थिति नहीं बदलती ! फिर हमें लगता है की दूर के  ढोल ही सुहाने थे !  इससे अच्छे तो हम पुरानी  जगह ,पुराने माहोल में ही थे !

दोस्तों ,हमारा मन हमें कभी वर्तमान में खुश और संतुष्ट नहीं  होने देता !  ऐसा अधिकतर होता है कि एक ही परिस्थिति में एक इंसान बहुत खुश और संतुष्ट महसूस करता है वहीँ दूसरा दुःख के पहाड़ तले  दबा रहता है !  परिस्थिति समान है पर मनस्थिति की भिन्नता व्यक्ति को अलग अलग सुख दुःख को महसूस कराती है !

एक बार एक व्यक्ति अपने गुरु के पास गया ! बोला ,गुरुदेव  मैं अपनी पत्नी से बहुत परेशान हूँ , क्योंकि वो खाना अच्छा नहीं बनाती है ! और मैं अच्छे खाने का ,खूब खाने का शौक़ीन हूँ !  वो अपनी तरफ से अच्छा बनाने की कोशिश तो करती है , लेकिन पता नहीं क्यों मुझे स्वाद ही नहीं आता !  मुझे बहुत तला ,भुना ,मिर्च-मसालेदार,चटपटा खाना पसंद है ! और उसे यह सब बनाना नहीं आता ! अब आप ही बताइए मैं क्या करूँ , मुझे तो कभी कभी लगता है की उसे तलाक ही दे दूँ !

गुरुदेव  ने सुना ,मुस्कुराये ,फिर बोले - बेटा ऐसा कर ,आज से अगले 10 दिनों तक तू सिर्फ मूंग की दाल की खिचड़ी खा ,वो भी सिर्फ उबाल कर ,न उसमे नमक हो ,न मिर्च और ना ही घी,तेल ! इसे मेरी गुरु-आज्ञा मान ! और हाँ ,खिचड़ी अपने ही हाथ से बनाना !
उस आदमी का तो मुहं ही खुला का खुला रह गया ! बोला  गुरुदेव ,मैं तो भूखा ही मर जाऊँगा ,पर ऐसा खाना कैसे खा पाऊंगा !

खैर ,गुरु-आज्ञा ,   माननी तो थी ही ! पहले दिन खिचड़ी बनी ही नहीं ! चावल कच्चे रह गए !   दूसरे दिन बनी तो खायी नहीं गई ,  जल गई थी !   तीसरे दिन बनी   पर बड़ी मुश्किल से खाई गई ,वो भी भूख की वजह से ! ऐसे ही 10 दिन 10 साल  की सजा जैसे बीते !  वो  11 वे दिन भागा -भागा गुरु के पास गया ,बोला  गुरुदेव ,अब क्या आज्ञा है !
गुरु ने कहा ,अब जा और अपनी पत्नी के हाथ का खाना -खाना शुरू कर !
5-7 दिन बाद गुरु उसके घर गए ,बोले -बेटा , तू आया नहीं अपनी पत्नी के खाने की शिकायत करने !
वो बोला ,  गुरुदेव ,मैं माफ़ी चाहता हूँ ,  इसी पत्नी के हाथ का खाना अब मुझे कितना स्वादिष्ट लगता है ,मैं बता नहीं सकता ! मेरी मनःस्थिति ही गलत थी ,  जो मैं उसे पहचान ही नहीं पाया ! वो मेरे लिए कितने प्रेम और समर्पण भाव से भोजन बनाती है ! उसकी मैं कद्र ही नहीं करता था ,हमेशा कमियां ही निकालता रहता था ! आपके इन 10 दिनों की सजा या आदेश ने मेरी आँखें खोल दीं हैं !
 
तो दोस्तों ,पत्नी भी वो ही है ,खाना भी वो ही है ! पर चूँकि अब मनःस्थिति बदल गई है तो परिस्थिति भी बदल गई है !

तो क्यों ना हम भी बाहर  सुख ,ख़ुशी खोजने की जगह अपनी मनस्थिति को ,अपने विचारों को ,सोचने के ढंग को थोडा बदल कर देखें ! क्या पता  हम असंख्य खुशियों और परमात्मा की कृपा ,अनुदानों के बीच ही बैठे हों ,और वो हमें दिख नहीं रही हों ! है ना ?

तो आइये  मनःस्थिति बदलें उसे सकारात्मक करें ,  परिस्थिति तो फिर अपने आप ही बदल जाएगी !

डॉ नीरज यादव

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मंगलवार, 23 जुलाई 2013

Motivational and Inspirational Quotes...part 5




Motivational and Inspirational Quotes...part 5


दोस्तों,
कुछ और प्रेरणादायक कथन , दुनिया की उन महान हस्तियों के ,जिनके नाम तो मुझे नहीं पता ,लेकिन पूरे आभार सहित ये quotes आप सबकी नजर हैं --


  • Listen to your heart and hear what it says, use your mind for decisions to make.

  • Always be happy TODAY,so tomorrow you would not ask, why was i sad yesterday?

  • Never forget that only dead fish swim with the stream.

  • It is an insult to your belief to doubt yourself.

  • Choice,not chance, determines destiny.

  • The quality of expectations determines the quality of our action.

  • A man full of courage is also full of faith.

  • Leaders must invoke an alchemy of great vision.

  • A smooth sea never made a skilled mariner.

  • Happiness is more a state of health than of wealth.

  • .....Ask not what your country can do for you,ask what you can do for your country.

  • Am I not destroying my enemies when I make friends of them?

  • A friend is someone with whom you dare to be yourself.

  • The best time to make friends is before you need them.

  • Be yourself. Who else is better qualified?

  • You can't shake hands with a clenched fist.

  • The difference between the ordinary and the extra ordinary ......is little extra.

  • Strong beliefs win strong men, and then make them stronger.

  • Home is where the heart is...

  • Never lose a chance of saying a kind word.

  • Don't ask for a light load, but rather ask for a strong back.

  • Little disciplines multiplies rewards.

  • You become successful by helping others become successful.

  • Praise loudly & blame softly.

  • If "I" is so important why there is no "I" in the word teamwork.



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Also see ...

बुधवार, 17 जुलाई 2013

happy birthday to achhibatein




                          जन्मदिन मुबारक...

दोस्तों,

आज आपके अपने blog "achhibatein " का पहला birthday है !
सबसे पहले आप सभी गुणी और सुधी readers को बधाई और आभार ,  आप सब के सहयोग के बिना यह संभव नहीं था !

दोस्तों आज कुछ दिल की बात आपसे ,   पिछले साल net  surf  करते हुए एक ब्लॉग दिखा achhikhabar .com , देखा तो अच्छा लगा !  blog के owner गोपाल मिश्रा जी को फिर कुछ अपने  article भेजे ! उन्होंने बड़े स्नेह से उन्हें अपने ब्लॉग पर publish किया ! फिर उन articles पर आप लोगों के comments आये ,उन्हें पढ़ा ,थोडा motivation मिला ,लगा  कि , लिखा जा सकता है !  5-6 articles और publish  हुए ,आप सब के और भी अच्छे comments आये ,और motivation मिला !


लेकिन फिर लगा कि दोस्त या रिश्तेदार कितने भी अच्छे हों ,  आप उनके घर हमेशा नहीं रह सकते , है ना ?   इसीलिए अपना छोटा सा घर बनाया ,blogger .com  पर !   बहुत सोच कर नाम रखा --"achhibatein "
फिर धीरे धीरे कारवां शुरू हुआ और आज एक साल हो गया ,  आपके और हमारे रिश्ते को !

ऐसा  लगा कि पलक झपकी और कैलेंडर बदल गया ! लेकिन ये बीता साल वक़्त की तिजोरी में 94,95 articles  9,000 readers और 41000 से ज्यादा Page Views का उपहार मुझे दे गया !

मुझे उम्मीद है कि मेरे किसी न किसी article ने आपको    हताशा भरे क्षणों में आशा की एक हलकी सी किरण दिखलाई होगी ! दुर्बलता के क्षणों में साहस का संचार किया होगा ! व्यस्तता ,दौड़-भाग भरी जीवन शैली में थोडा ही सही पर आपको relax किया होगा ! article की किसी line ने आपके तनाव ग्रस्त चेहरे पर मुस्कान की झलक दिखला दी होगी ! अगर ऐसा जरा सा भी हुआ है ,तो मेरा blog लिखना सार्थक है !

और सच मानिए दोस्तों ,मेरे अपने लिखे article से आप जितना motivate होते हैं ,उससे कहीं ज्यादा मैं स्वयं motivate होता हूँ !

शुक्रिया दोस्तों ,  मेरे विचारों को ,  मेरी लेखन शेली को  और आपके अपने blog "achhibatein " को पसंद करने के लिए !
शुक्रिया ,  मेरे अन्दर छुपे हुए writer को बाहर लाने के लिए !

आशा ही नहीं उम्मीद भी है कि आने वाले समय में आप सब का प्यार ,स्नेह और सहयोग इससे भी कहीं ज्यादा मुझे मिलेगा ,  मिलेगा ना ??

पुनः आप सभी को आपके blog की पहली वर्षगाँठ की हार्दिक बधाई .........

डॉ नीरज .......

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शुक्रवार, 12 जुलाई 2013

चन्दन का पेड़




                                   चन्दन का पेड़ 

एक बार एक बहुत घना जंगल था ,जिसमे एक गरीब किसान रहा करता था !  वो रोज लकड़ी काट कर उसको जला  कर कोयला बनाता था  और उसे जंगल के बाहर एक गाँव में जाकर बेच देता था , कोयला बेच कर जो भी पैसे मिलते  थे ,उससे घर का सामान खरीदता था , इसी  तरह उसकी जिंदगी चल रही थी ! एक दिन उस राज्य का राजा शिकार करते हुए रास्ता भटक कर उस घने जंगल में उस किसान की झोंपड़ी के पास आ पहुंचा ! किसान और उसकी पत्नी ने राजा का अपनी सामर्थ्य अनुसार बहुत सत्कार किया ! उनकी निश्छल सेवा से खुश होकर राजा ने उस किसान को एक चन्दन के पेड़ का बाग़ उपहार में दे दिया !

किसान अपनी रोज की आदत की तरह रोज चन्दन का एक पेड़ काटता उसे जला कर कोयला बनाता और उसे बाजार में ओने-पोने दाम में  बेच आता ! ऐसे ही उसने लगभग पूरा बाग़ कोयला बना कर बेच दिया ! देव योग से एक बार बारिश कई दिनों तक हुई ,धूप नहीं निकली ! मजबूरी में किसान को चन्दन की लकड़ी को ही बाजार में ले जाना पड़ा ! वो रस्ते में सोचता हुआ जा रहा था की इस बार तो में कोयला भी नहीं बना पाया , पता नहीं इस लकड़ी के मुझे क्या दाम मिलेंगे ,वैसे भी ये गीली हो चुकी है !

ये ही सोचते सोचते गाँव का बाजार आ गया ,वो जैसे ही बाजार में घुसा ,बहुत सारे लोगों ने उसे घेर लिया ! कहा ऐसी खुशबू वाली लकड़ी हमने आज तक नहीं देखी ! बाजार में आये कई रईसों ने उस लकड़ी के गट्ठर को हजारो रुपये में खरीद लिया ! किसान ढगा सा खड़ा रह गया वो न ढंग से खुश हो पा रहा था और न दुखी ! वो खुश था की उसे एक ही दिन में हजारों रुपये मिल गए लेकिन उसे बहुत अफ़सोस हो रहा था की उसने अब तक  सोने के मोल वाले पेड़ों  को मिटटी के मोल बेच दिया ! बेचारा किसान .......

दोस्तों   क्या आप को नहीं लगता की वो किसान और कोई नहीं हम ही हैं ! है ना ? जो इस सुर दुर्लभ अनमोल काया  और मनुष्य जीवन को मिटटी की तरह बर्बाद किये जा रहे हैं !

हम अपनी पूरी जिंदगी को यूँ ही गँवा  देते हैं बिना कुछ सार्थक हासिल किये , फिर अंत में समझ आता है और पछतावा भी होता है की अरे मैंने इस जीवन को यूँ ही बर्बाद कर दिया , कुछ हासिल ही नहीं कर पाया ! ये मेरा जीवन जो चन्दन की तरह इस संसार में महक सकता था ,कोयले  की तरह ही बन कर रह गया !

ये जीवन और ये शरीर जिसमे पूरी सामर्थ्य थी   विश्व विजेता बनने की , इंदिरा गाँधी , बिल गेट्स , अभिताभ बच्चन ,ओबामा,नेपोलियन , विवेकानंद या ऐसा ही कोई चन्दन सा पेड़ बनने की ,  इसे मैंने अपने आलस्य ,प्रमाद ,भय ,दुर्बलता की अग्नि में जला  कर कोयले सा बना दिया !

बजाये जीवन के अंत में पछताने के क्यों न हम अभी से ही अपनी महक (सुगंध ) इस धरा पर फैला दें ! क्योंकि भले ही हमें याद नहीं या हम भूल चुके हैं अपनी सामर्थ्य और एक मनुष्य होने के मूल्य को ,फिर भी आखिर हम है तो एक चन्दन का पेड़ ही ,है ना ??

डॉ नीरज यादव 


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शुक्रवार, 5 जुलाई 2013

कैसे बचें कार्य के तनाव से.....




                         कैसे बचें कार्य के तनाव से.....

दोस्तों,
 कल्पना कीजिये आप एक बहुत ही प्रसिद्ध मूर्तिकार हैं, माइकल एंजेलो की तरह ,जो संगमरमर पत्थर कि शिला को तराश कर अदभुद और सुन्दर मूर्तियों का निर्माण करता है !

अब एक सवाल आपसे ,मान लीजिये आपको संगमरमर की एक बड़ी मूर्ति बनाने का order मिलता है ,जिसके लिए उतनी बड़ी संगमरमर की शिला या पत्थर आप के पास है या आप खरीद लेते हैं !  अब आप क्या करेंगे ? कैसे मूर्ति बनायेंगे ??

या तो आप उस पत्थर के सामने बैठेंगे ,दिमाग में मूर्ति का खाका (design ) सोचेंगे ,उसे पत्थर पर उकेरेंगे ,फिर छैनी और हथोड़े से तराश कर उस पत्थर को एक सुन्दर मूर्ति का रूप देंगे ! और ये सब काम आप बड़ी सहजता ,धीरज और कल्पना से करेंगे ,बिना किसी दवाब और तनाव के ,है ना ?
या फिर आप सबसे पहले उस पत्थर की शिला को अपने सिर पर रख कर बाँध लेंगे ,फिर खाते,सोते , नहाते ,उठते-बैठते  हर समय उसे अपने सिर पर रखेंगे और फिर अपने हाथ ऊपर कर मूर्ति बनाने की कोशिश करेंगे ?

दोस्तों हम सब जानते हैं कि पहला तरीका ही सही और व्यावहारिक है ! लेकिन विडम्बना है कि हम सब अधिकतर अपनी जिंदगी के रोजमर्रा के काम,परेशानियों ,जिम्मेदारियों की शिला को सामने रख कर सोचने की बजाय अपने सिर पर बाँध लेते हैं ,है ना ?

workplace का कोई काम हो  या कोई target पूरा करना हो ,कोई planning करनी हो ,तो बजाय सहज रूप से उसके बारे में सोचने और plan बनाने के हम एक बोझ की तरह सबसे पहले उसे अपने सिर पर हावी कर लेते हैं !

अरे ! इतना काम करना है ! इतने से समय में करना है ! कैसे plan बनेगा ! कैसे output मिलेगा ! मैं कैसे इसे पूरा कर पाऊंगा  ! कर पाऊंगा भी या नहीं ..........................
हम इन सारी बातों को तनाव और परेशानियों की शिला का रूप देकर अपने सर पर लाद लेते हैं ! फिर उसका हल सोचना और उसे पूरा करना तो दूर ,हम उसके तनाव तले ही इतने दब जाते हैं ,कि मानसिक और शारीरिक रूप से बेदम और बेबस ,हताश हो जाते हैं !

हम इंसानों में से अधिकतर लोगों को कोई भी नई जिम्मेदारी मिलने पर हमारी पहली प्रतिक्रिया अधिकतर यही होती है कि .........अरे ! कैसे करूँगा ? कब करूँगा ? मुझे तो ढंग से करना आता भी नहीं है ? मैंने तो ये काम पहले कभी किया ही नहीं है ?.....
हम उस अवसर को तनाव और दवाब का रूप देकर उसे अपने ऊपर हावी कर लेते हैं !

 कई लोगों को मैंने देखा है जो काम करने के दवाब तले  ही दबे जा रहे हैं ! और अपनी शक्ति को कुंद कर रहे हैं ,बिना कुछ किये ,सिर्फ सोच सोच कर ही !

कार्य के तनाव से बचने के उपाय ----

आप सबसे पहले किसी भी काम(task) या जिम्मेदारी को तनाव और बोझ मानना छोड़िये !

फिर इसे अपने सर पर लादना बंद कीजिये !

काम रूपी चट्टान के सामने बेठिये ,दिमाग में design बनाइये की कहाँ सिर बनेगा ,कहाँ पर पैर बनाना सही रहेगा ! फिर उस design को उस चट्टान पर उकेरिये (planning ) बनाइये  और फिर जुट जाइये मूर्ति तराशने में ( अपना काम पूरा करने में )

अगर आप काम को तनाव  मानेंगे तो यह आपको धीरे धीरे मार डालेगा ,और अगर आप काम को अवसर मानेंगे  तो यह अपने पंखों पर बिठा कर आपको नई  ऊँचाइयों पर ले जाएगा !

दोस्तों मान लीजिये आपके सामने काम का ढेर पड़ा है जो कि आने वाले कुछ दिन, महीने या साल में आपको करना है ! अब या तो उस गठरी को सिर पर लाद  लीजिये और अपनी गर्दन तथा सर को दर्द से बेहाल कर लीजिये  या फिर उस ढेर में से एक-एक काम उठाइये और निबटाते जाइये ,है ना ?

दोस्तों जब हम किसी भी काम या जिम्मेदारी को  तनाव या चिन्ता के रूप में मन पर हावी कर लेते हैं तो यह चिन्ता बुरी तरह मन को थका  देती है ,उसे अक्षम सा कर देती है ! और ये तो आप जानते ही होंगे कि मन और शरीर का समवाय (mutual ) सम्बन्ध होता है ! तो फिर ऐसे में हम जो मन में महसूस करते हैं ,कुछ समय बाद वो शरीर पर लागू होने लगता है !

चिन्ता से पहले हमारा मन थकता है फिर हमारा शरीर भी थक जाता है ! और हम बिना कुछ किये ही अपने आप को थक हुआ ,निढाल सा महसूस करते हैं ,है ना ?

तो इसीलिए चिंता ,तनाव छोडिये ,काम का पत्थर सम्हालिए और जुट जाइये एक बढ़िया मूर्ति बनाने में ( अच्छे से काम निबटाने में .........)

डॉ नीरज यादव 


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