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शुक्रवार, 17 मई 2013

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जरा अपने को ही सुधार लें --

दोस्तों,

जब से दुनिया बनी है तब से हर इंसान सिर्फ और सिर्फ दूसरे को ही सुधारने ,उसे अपने मन मुताबिक़ ढालने में ही लगा है ! लेकिन विडम्बना और हकीकत है कि आज तक कोई किसी को सुधार या बदल नहीं पाया है !

माता-पिता बच्चों को बदलना (सुधारना ) चाहते हैं ! पति पत्नी को ,पत्नी पति को , सास बहु को ,बहु सास को , गुरु शिष्य को ,boss  employee को ,,नेता अनुयायी को ,सब एक दुसरे को अपने मुताबिक ढालना चाहते हैं ! लेकिन सारी जिंदगी की इस "दूसरे को  बदलो अभियान" के बाबजूद कोई दूसरे के मुताबिक़ नहीं बदलता !  बदलता वो ही है ,जो खुद अपने अन्दर से (स्वप्रेरणा से ) बदलना चाहता है !

किसी के दवाब में आकर बदलना ,  बदलाव नहीं मजबूरी होती है ! आप किसी spring को दवाब देकर दबाए रख सकते हैं ! लेकिन जैसे ही आप दवाब हटाएँगे ,वो वापस उछलकर अपने पूर्व रूप में आ जाएगी !
हम सामने वाले को डरा-धमका कर,बहला कर ,लालच देकर ,गुस्सा होकर ,साम,दाम,दंड,भेद से क्षणिक रूप में बदल तो सकते हैं लेकिन अस्थाई तोर पर ही !

हमारी सारी शक्ति ,उर्जा ,समय ,सुकून  सामने वाले को बदलने के प्रयास में ही व्यर्थ हो जाता है ,लेकिन अंत में ढाक के वही तीन पात , बदलता कोई नहीं 

दोस्तों, इस दुनिया में अगर कोई किसी दूसरे के सुधारने से सुधर गया होता या दूसरे के बदलने से बदल गया होता तो यह धरती अभी जन्नत से कम नहीं होती !
आप कहेंगे बहुत से लोग हैं जिन्होंने अपने आप को बदला है ,अपने को रूपांतरित किया है ,किसी दूसरे के कहने पर , फिर चाहे वो अंगुलिमाल हो या वाल्मीकि ,है ना ?
लेकिन दोस्तों, बदले वो ही लोग हैं  जिनकी अंतरात्मा ने बदलना चाहा है  ! बिना स्वयं की आंतरिक इच्छा के दुनिया की कोई भी ताकत आपको बदल या सुधार  नहीं सकती ,जब तक की आपका अंतस स्वयं ना चाहे !

तो दोस्तों ,जो शक्ति ,समय हम दूसरों को बदलने में जाया कर रहे हैं उसे स्वयं को बदलने और अपने व्यक्तित्व विकास में लगा लें ! हमारे स्वयं में ही अभी इतनी कमियां और सुधार की गुंजाइश है कि हम अपने को ही सुधारने में लगें तो भी समय कम पड़ जाएगा !

एक खरा सवाल दोस्तों ,आपकी कितनी आदतें हैं जो आप बदलना तो चाहते हैं पर अभी तक बदल नहीं पाए हैं ? फिर चाहे वो जल्दी उठना हो, सिगरेट छोड़ना हो या ऐसी ही कोई दूसरी आदत ? शायद कोई भी नहीं ,या बहुत कम आदतें हम हमारी बदल पाते हैं ,है ना ?

तो दोस्तों ,जब हम खुद को ही नहीं बदल पा रहे हैं तो किसी दूसरे से कैसे बदलने की अपेक्षा कर सकते हैं ?

अगर आप चाहते हैं कि मधुमक्खियाँ आप पर मंडराएं तो बजाये उनको पकड़ के किसी पिंजरे में अपने पास जबरदस्ती रखने के क्यों नहीं आप स्वयं गुलाब बन जाएँ ,मधुमक्खियाँ बिना कहे आपके चारों और मंडराने लगेंगी ,है ना ?

 बरसों पहले की बात है ,जब आदमी धरती पर नंगे पैर रहता था , आये दिन जमीन के कंकड़-पत्थर ,काँटों से उसके पैर लहुलुहान हो जाते थे ! इसी समस्या को लेकर एक दिन राजा  ने दरबार बुलाया ! और इस समस्या का समाधान पूछा ! सब दरबारियों ने अपने अपने विचार रखे ! किसी ने कहा ,महाराज कुछ सफाई वालों ,झाड़ू वालों को नियुक्त किया जाए ,जो रास्तों को लगातार साफ़ करते रहे ,लेकिन पूरी पृथ्वी के हर हिस्से को बार बार साफ़ करना लगभग असंभव है,इसलिए ये विचार मान्य  नहीं हुआ !
किसी और ने कहा ,महाराज ! पूरी धरती को चमड़े से ढक  दिया जाए ताकि इस समस्या से छुटकारा मिले ! लेकिन इतना चमड़ा लायेंगे कहाँ से और पूरी धरती को उससे ढकेंगे कैसे ?
अंत में एक समझदार आदमी बोला  , महाराज एक छोटा सा निवेदन है , बजाये पूरी धरती को चमड़े से ढकने के आप सिर्फ अपने पैरों को, उनके तलवों को ही चमड़े से ढक लें ! इससे ना सिर्फ कंकड़-पत्थर ,काँटों से आपका हमेशा बचाव होगा ,बल्कि चमड़ा भी कम खर्च होगा ! और इस तरह दुनिया की पहली जूती अस्तित्व में आई !
कहने का तात्पर्य  बजाये सभी को अपने मुताबिक़ ढालने का असंभव प्रयत्न करने के हम स्वयं को ही अपने मुताबिक़ बदल लें !

आखिर ..........हम बदलेंगे तभी तो युग बदलेगा ,है ना ?



डॉ नीरज 
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1 टिप्पणी:

दोस्त, आपके अमूल्य comment के लिए आपका शुक्रिया ,आपकी राय मेरे लिए मायने रखती है !