may14

मंगलवार, 26 मार्च 2013

happy holi....





रूठों को मना ही लें .....

दोस्तों ,

आप सभी Achhibatein के रंगमय पाठकों को होली की रंग भरी शुभ-कामनाएं ....


आइये इस होलिका दहन पर हम भी दहन करें अपनी ...

असफलताएं ,डर  , तनाव ,चिन्ताएं ,आलस ,क्रोध , अहंकार ,लापरवाही जैसे अनगिनत होलिका रूपी बुराइयों का ...

और अपने जीवन को भरें ...

प्यार ,ख़ुशी ,संतोष ,सुख,समृद्धि ,सहकार ,नए उत्साह ,उमंग के सतरंगी रंगों से .....

इस होली पर किसी ऐसे व्यक्ति को रंग जरूर लगायें ! जो आपसे या आप जिससे बहुत समय से रूठे हुए हैं ! बस एक चुटकी गुलाल ,गाल पर ......! 

मेरे कॉलेज time में मेरी एक अच्छे दोस्त से अनबन हो गई थी ! बोलना बंद हो गया था !   हम आपस में चाह कर भी नहीं बोल रहे थे ! फिर होली का दिन आया !   हम hostel में ही थे !  हम सभी दोस्तों ने जम कर होली खेली !   होली खेलते हुए हम दोनों अचानक आमने सामने आ गए !   एक सेकंड एक दूसरे को देखा ,और कब हमारे हाथों का गुलाल दूसरे के गाल पर लग गया ,पता ही नहीं चला !    महीनो बाद हम दिल से वापस गले मिले ! सच में एक सुखद अहसास .....!

तो इस होली पर आप भी किसी अपने रूठे को मना  ही लीजिये !

पुनः आप सबको ...........

                           HAPPY- HOLI 


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बुधवार, 20 मार्च 2013

परोपकारी भी बनें ..




                                  परोपकारी भी बनें ........


एक राजा अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए अकसर वेश बदल कर दिन रात घूमा करता था ! एक दिन वो एक ग्रामीण के वेश में था ,उसने देखा की एक बहुत ही बूढा आदमी एक बाग़ में काजू का पेड़ लगा रहा है ! राजा ने उससे पूछा ,-बाबा ,आप ये पेड़ किसके लिए लगा रहे हो ? जब तक इसमें फल लगेंगे ,तब तक तो आप रहोगे नहीं ! फिर इसे लगाने से क्या फायदा ?
बूढा हंसा ,बोला ,-फलों के पेड़ इसलिए नहीं लगाये जाते की हम लगाते ही उनके फल खाएंगे ,पेड़ लगाता कोई और है ,और उसके फल खाता कोई और है ! यह दुनिया की बहुत पुरानी रीत है ! दुनिया ऐसे ही चलती है ! आज मैं जिस पेड़ के फल खा रहा हूँ उन्हें मेरे पूर्वजों ने लगाया था ,और आज मैं जिस पेड़ को लगा रहा हूँ इसके फल आने वाली पीढियां खाएंगी ! अगर हमारे पूर्वजों ने भी सिर्फ अपने लिए ही सोचा होता तो आज दुनिया और हम इतने विकसित और खुशहाल नहीं होते ! 

नदी अपने लिए नहीं बहती ,पेड़ अपने फल कभी खुद नहीं खाता ,धरती भी किसी बीज को सिर्फ अपने लिए नहीं रखती उसे असंख्य गुना कर हमें ,हमारे जीवन के लिए दे देती है ! बादल भी पानी को अपने तक ही नहीं रखते ,खुले दिल और हाथों से हमारी धरती और हम सबकी खुशहाली के लिए दे देते हैं !

दोस्तों,हम भी थोडा परोपकारी बनें ! किसी भूखे को ज्यादा नहीं तो एक बिस्कुट का पैकिट , फल ,या एक चाय ही पिला दें ! किसी पढने की इच्छा रखने वाले गरीब बच्चे के हाथों में copy-pencil रख कर तो देखिये ! आप भी कोई पेड़ लगाइए ! और कुछ नहीं तो दिल से दुआ ही दीजिये ! अपने कर्म अपने व्यवहार अपने परोपकार से किसी के चेहरे पर एक छोटी मुस्कान ही ला दीजिये ! जितना अच्छाई रूपी परोपकार आप आज इस संसार के लिए करेंगे ,भविष्य में यह संसार और आप भी ,आप की आने वाली पीढियां भी, उतने ही अच्छे से रहेंगी ! 

एक कहावत है --मैंने बरसों पहले किसी के हाथों में एक गुलाब दिया था ,उस गुलाब की खुशबू आजतक मेरे हाथों में बसी है !  

तो दोस्तों ..दे रहे हैं ना आप ?............मुझे ........अपना प्यार ,स्नेह ,और हाँ ......आपके प्यारे comments भी 


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शुक्रवार, 15 मार्च 2013

प्रभावी नेतृत्व के 16 गुण -




                  प्रभावी नेतृत्व के 16 गुण --------




दोस्तों,

नेतृत्व करना एक ख़ास कला है ,जो सामान्य व्यक्तित्व के अन्दर नहीं होती ! श्रेष्ठतम लीडर वही बन पाता है ,जो लोगों के दिलों पर राज करता है ! और जिसकी personality को हर कोई स्वीकारता है ! ऐसे व्यक्ति के साथ काम करने वाले लोग अपना सब कुछ उस पर निछावर करने के लिए तत्पर होते हैं ! 
आइये जानते हैं उन 16 गुणों को ,जो effective leadership के लिए आवश्यक हैं ----

  • अनुशासन प्रिय होना ---- एक नेतृत्व कर्ता को स्वयं अनुशासित जीवन जीना चाहिए ! और समय पर हर काम को पूरा करना चाहिए ! ऐसा होने पर ही उसके Subordinate और colleague अनुशासित रहेंगे और अपने निर्धारित कार्यों को समय पर पूरा करने का प्रयास करेंगे !


  • श्रमशीलता --- जो व्यक्ति श्रम को ही पूजा मानते हैं तथा अपेक्षा से अधिक काम करने की चाहत व क्षमता रखते हैं ,वे ही अपने सहकर्मियों को और अधिक अच्छा करने की प्रेरणा दे सकते  हैं !

  • उत्तरदायी होना ---व्यक्ति को अपने कार्यों के प्रति जिम्मेदार या उत्तरदायी होने के साथ -साथ अपने अंतर्गत काम करने वालों की गलतियों व असफलताओं के दायित्व को स्वीकार करने का साहस भी होना चाहिए ! ऐसा किये बिना उनके विश्वास को नहीं जीता जा सकता !

  • वस्तुनिष्ठ व्यवहार ---सफल नेतृत्व कर्ता के व्यवहार में निष्पक्षता एवं सोच में वस्तुनिष्ठता का गुण होना चाहिए !  इसके लिए Personal relationships को professional relationships से बिलकुल अलग रखा जाना चाहिए !

  • साहस ---नेतृत्वकर्ता को साहस का परिचय देते हुए चुनौतियों को स्वीकार करना चाहिए और अपना पुरुषार्थ करना चाहिए ! जो व्यक्ति आत्मविश्वास से भरपूर और निर्भय नहीं होते हैं ,उनके नेतृत्व को बार-बार चुनोतियाँ मिलती रहती हैं और ऐसे व्यक्ति के नेतृत्व को उसके सहकर्मी लम्बे समय तक स्वीकार नहीं कर पाते !


  • स्वनियंत्रण ---नेतृत्व कर्ता को अपनी वाणी एवं व्यवहार ,अपने नियंत्रण में रखना आना चाहिए ! क्योंकि  नेतृत्व कर्ता के मर्यादाहीन व्यवहार से उसके नियंत्रण में काम करने वाले लोग भी मनमानी करने लगते हैं !

  • सही निर्णय लेने की क्षमता ---जो व्यक्ति अपने निर्णयों को बार-बार बदलता है , उसकी निष्पक्षता और बुद्धिमत्ता संदिग्ध रहती है ! इसीलिए नेतृत्व कर्ता को ठीक से सोच विचार कर दूरदर्शिता के साथ सही  निर्णय लेना आना चाहिए !

  • स्पष्ट योजना ---एक सफल नेतृत्व कर्ता केवल अनुमान के आधार पर कोई कार्य नहीं कर सकता !  उसे कार्य की योजना बनाना और योजनानुसार कार्य करना आना चाहिए !

  • सहानुभूतिपूर्ण सोच ---एक नेतृत्व कर्ता को सकारात्मक और सहानुभूतिपूर्ण सोच वाला होना चाहिए ! साथ वालों का बुरा न हो और  यथा संभव भला हो ,ऐसे व्यवहार से ही दूसरों का दिल जीता जा सकता है !

  • शालीन व्यवहार ---कहते हैं ,व्यक्ति वाणी से ही दोस्त और दुश्मन बनाता है !  वाणी में मिठास और व्यवहार में शालीनता व्यक्ति को समूह में स्वीकृति दिलवाती हैं ,जो नेतृत्व की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं !

  • सहकारिता की प्रवृति ---नेतृत्व कर्ता अपने हर काम को सहकार अर्थात एक सबके लिए ,सब एक के लिए  की भावना से करता है ! वो अपने समूह की सफलता में ही अपनी सफलता देखता है !


  • अहम् से दूरी ---नेतृत्व कर्ता में अपनी कमजोरियों या गुणों के सम्बन्ध में किसी प्रकार की ग्रंथि नहीं होनी चाहिए ! उसे अपने अहम् को दूर रख यथार्थ को स्वीकार करने का साहस दिखाना चाहिए !

  • संस्थान के लिए समर्पण भावना ---जो अधिकारी अपने संस्थान के हितों के प्रति समर्पित नहीं होता ,  उसे अपने अधीनस्थों से भी ऐसी आशा नहीं रखनी चाहिए !

  • जानकारी की पूर्णता ---नेतृत्व कर्ता को अपने संस्थान के प्रत्येक कार्य की थोड़ी या अधिक जानकारी अनिवार्य रूप से होनी चाहिए ! इसके अभाव में उसको सहायकों द्वारा मुर्ख बनाये जाने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं !

  • संपर्कों से सुद्रढ़ता ---नेतृत्व कर्ता का व्यावसायिक और गैर व्यावसायिक क्षेत्रों से भी संपर्क होना चाहिए और उनकी जरुरत के समय यथा संभव सहयोग भी करना चाहिए ! इससे उसे भी अन्य लोगों का सहयोग मिलेगा !

  • अनोपचारिक सम्बन्ध ---नेतृत्व कर्ता को अपने सम्बन्ध को प्रगाढ़ करने के लिए अपने साथियों की खुशियों में उत्सव मनाने और विपत्ति के समय सहानुभूति व्यक्त करने से संबंधों में प्रगाढ़ता बढती है !

नेतृत्व कुशलता एक ऐसी कला है ,जिसके माध्यम से बहुत आसानी से बड़े-बड़े असंभव कार्यों को भी सरलता के साथ किया जा सकता है !  बिना मार्गदर्शन के आगे बढ़ने में भटकाव ही होता है ! और किसी भी तरह की सफलता प्राप्त नहीं होती है ! बिना नेतृत्व के इकठ्ठा हुयी भीड़ से कुछ ख़ास कार्य नहीं कराया जा सकता , वहीं सही नेतृत्व से सेना की एक छोटी सी टुकड़ी के द्वारा भी युद्ध जीता जा सकता है !


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दोस्तों ये article पूज्य गुरुदेव पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के ज्ञान के सागर की कुछ बूंदे हैं ,जो जीवन में प्रभावी नेतृत्व के गुणों को हमें बताती हैं !

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मंगलवार, 12 मार्च 2013

4 Principles of successful life ....in hindi



                सफल जीवन के 4 सिद्धांत .........


कठिन परिस्थितियों से जूझते हुए भारत के माने हुए इंजीनियर बनने में सफल हुए विश्वेश्वरेया ने अपनी आत्म-कथा में उन सिद्धांतों पर प्रकाश डाला  है ,जिनके कारण वे प्रगति और उन्नति के पथ पर अग्रसर हो सके ! 

Biography & Autobiography--Memoirs of my working life

वे लिखते हैं --------   मैंने 4 सिद्धांतों को आदि से अंत तक अपनाये रखा ! जो मेरी तरह ही सफल जीवन जीना चाहते हैं ,  उनसे मैं इन 4 सिद्धांतों को जीवन में अपनाने का अनुरोध करता हूँ !  

वे सिद्धांत हैं ------

  • लगन से काम करो ! मेहनत  से जी न चुराओ ! आराम  कड़ी मेहनत के बाद ही अच्छा लगता है !

  • निर्धारित कामों का समय नियत करो ! समय पर काम करने की आदत डालने से काम अधिक भी होता है और अच्छा भी !

  • यह सोचते रहो की आज की अपेक्षा  कल किस तरह अधिक अच्छा काम हो !  जो सीख चुके हो ,उससे अधिक सीखने का प्रयत्न करो !  सोचो,योजना बनाओ ,गुण-दोषों पर गंभीरतापूर्वक विचार करने के बाद ही काम में हाथ डालो !

  • अहंकारी न बनो ! नम्रता का स्वभाव बनाओ ! साथियों के साथ मिल-जुल कर काम करने की आदत डालो !

इसके विपरीत येन-केन-प्रकरेण सफलता पा लेने वालों को तो एक दिन अपमान,असंतोष और असफलता का ही मुँह देखना पड़ता है !



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शनिवार, 9 मार्च 2013

happy mahashivratri in hindi



                                शिवत्व की साधना 



' शिव ' का अर्थ कल्याण होता है ! जो इंसान इस देवता के तत्त्व दर्शन को समझ कर उसके आदर्शों को जीवन में उतार लेता है ,उसका अमंगल कभी नहीं होता ! वह धीरे धीरे आत्मोन्नति करता हुआ चरम लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है ! "महाशिवरात्रि " पर्व का वास्तविक उद्देश्य यही है !
हर साल यह पर्व फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाता है ! समझा जाता है की इस अवसर पर कोई भी उत्तम कार्य करने से उस पर भगवान शिव की दृष्टि पड़ती है ,जो करने वाले के लिए कल्याणकारी सिद्ध होती है !

शिवजी का स्थान हिन्दू धर्म में बहुत ऊँचा है ! पुराणों में  एक शिवजी ही ऐसे देवता बतलाए गए हैं ,जो संपत्ति और वैभव के बजाय त्याग और अकिंचनता का वरण करते हैं ! वे सर्वशक्तिमान हैं !  उन्हीं के इशारे पर संसार में प्रलय उपस्थित होती है और उनका तीसरा नेत्र बड़ी से बड़ी शक्ति को जला  कर राख करने की क्षमता रखता है !  इतने पर भी वे सदा नंगे , भूखे, दीन -हीन ,भूत -प्रेतों के साथी बने रहते हैं !  उन्होंने अमृत का त्याग कर गरल को पिया , हाथी तथा घोड़े को छोड़ कर बैल की सवारी स्वीकार की और हीरे-मोती जैसे रत्नों को त्याग कर सर्प को गले लगाया ! 

इस प्रकार शिवजी का स्वरुप हमको इस बात की शिक्षा देता है की हमें प्रकृति ने यदि विशेष शक्ति या योग्यता प्रदान की है तो उसका मतलब ये नहीं की हम स्वार्थी बन जाएँ और अपनी शक्ति का उपयोग अपने निजी सुख और भोगों के लिए ही करें ! 
शिवजी का आदर्श बतलाता है कि जिसको जितनी अधिक शक्ति मिली है ,उसका उत्तरदायित्व भी उतना ही महान है ! 
शिवजी का दिगंबर रूप अपरिग्रह का प्रतीक है ! संसार में भोग -सामग्रियों का कोई अंत नहीं ! वह मनुष्यों के ज्यों-ज्यों समीप आती जाती हैं ,त्यों-त्यों उनकी लालसा भी बढती जाती है ! भगवान् का उक्त स्वरुप हमें अपरिग्रही बनने और सीमित में संतोष करने की प्रेरणा देता है !
वे बाघम्बरधारी  हैं और प्रेत-पिशाच के संग रहते हैं ! उनकी यह मनोदशा वैराग्य को दर्शाती है ! 

शिव तत्व का बोध कराते हुए माँ महेश्वरी के वचन हैं ----

देवादिदेव प्रभु जगत के आदि हैं ,फिर उनके वंश का वृतांत कौन जान सकता है !
 समस्त जगत उनका स्वरुप है ,इसीलिए वे दिगंबर हैं ! 
वे त्रिगुणात्मक शूल धारण करते हैं ,इसीलिए उन्हें शूली कहते हैं !
वे पंचभूतों से बद्ध नहीं ,बल्कि सर्वथा मुक्त हैं ,इसीलिए वे भूत गणों के अधिपति हैं ! 
उनकी विभूति (राख) ही सबको विभूति (ऐश्वर्य ) प्रदान करती है ! इसीलिए वे विभूति को अपने शरीर पर धारण करते हैं !
धर्म ही वृष है और उस पर आरूढ़ होने के कारण वे वृष वाहन हैं ! 
क्रोधादि दोष ही सर्प हैं ,शिव इन सबको वशीभूत करके इन्हें भूषण के रूप में धारण करते हैं ! 
विविध क्रियाकलाप ही जटाएं हैं ,इन्हें धारण करने के कारण वे जटाधारी हैं ! 
त्रिगुणमय शरीर ही त्रिपुर है ,इसे भस्मसात करने के कारण ही प्रभु त्रिपुरारी हैं !
जो सूक्ष्मदर्शी पुरुष इस प्रकार के भगवान् महाकाल के स्वरुप को जानते हैं ,वे भला उन्हें छोड़ कर और किसकी शरण में जाएंगे !

आप सभी Achhibatein के सुधि पाठकजनों को महा शिवरात्री पर्व की अनेकों शुभ-कामनायें ...........



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ये artical पूज्य गुरुदेव के ज्ञान के सागर की कुछ बूंदें हैं !
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शुक्रवार, 8 मार्च 2013

dil na ummed to nahin.......





दिल ना उम्मीद  तो नहीं ..........




दोस्तों,


दिल ना उम्मीद  तो नहीं ,नाकाम ही तो है !

लम्बी है गम की शाम ,मगर शाम ही तो है !!


शुक्रिया दोस्तों ,
इस अहसास के लिए की  अभी तो शुरुआत ही है ! मंजिल अभी बहुत दूर है ! 
 मुझे लगा था की शायद आपके और मेरे बीच एक रिश्ता बना है ,जो मुझे achhibatein लिखने के लिए प्रेरित करता है ! पिछली पोस्ट पर आपसे संवाद के सहयोग की अपेक्षा की थी लेकिन यहाँ मुझे थोड़ी मायूसी हुई  ! मुझे लगा था की आपकी तरफ से शायद उस पहेली के ऐसे जवाब मुझे मिलेंगे जो शायद उस कहानीकार को भी पता ना हों ! 

शायद अभी मेरा प्यार एक तरफ़ा ही है ! लेकिन बहुत जल्दी ही ये दो तरफ़ा होने वाला है ..............आपकी तरफ से भी ,है ना ?

तो दोस्तों उस पहेली  के किस्से को यहीं ख़तम करते हैं और उसकी 3  अनमोल शिक्षा को भी !  क्योंकि मुझे लगता है की शायद आप उन्हें जानना नहीं चाहते हैं ! इसलिए वो बात फिर कभी !

अपने दो तरफ़ा प्यार के लिए मेरा अगला कदम ...........अगली post ...
शुक्रिया 
डॉ नीरज 


शनिवार, 2 मार्च 2013

a puzzle with story.....




थोड़ी कहानी थोड़ी पहेली .......

दोस्तों 

आज एक शिक्षाप्रद लोककथा जो मैंने बहुत पहले किसी book में पढ़ी थी , आज मैं एक पहेली के रूप में उसे आप सब के साथ share कर रहा हूँ ! शायद आप में से कई व्यक्तियों ने इसे पढ़ा भी होगा और अपनाया भी होगा ! तो पहले कहानी ,बाकी बातें उसके बाद ,ठीक है  ----

किसी बर्फीले प्रदेश की बात है ! एक छोटी सी चिड़िया आसमान में उड़ रही थी ,चारों तरफ बर्फ ही बर्फ दिख रही थी ! तेज ठण्ड के कारण चिड़िया उड़ते उड़ते जमीन पर गिर कर बेहोश हो गई ! वो ठण्ड से मरने ही वाली थी ,की तभी वहां से एक गाय गुजरी ! गाय ने उसे देखा और उसके ऊपर गोबर कर दिया ! गोबर की गर्मी के प्रभाव से चिड़िया को होश आ गया ! और वो ख़ुशी के मारे गोबर के अन्दर ही चहकने लगी ! उसके चहकने को पास से गुजरती एक बिल्ली ने सुन लिया ! बिल्ली ने उसे गोबर के बाहर निकाला ! उसे पानी से साफ़ किया ,उसका गोबर हटाया और  उसे खा गई !

बस दोस्तों कहानी इतनी सी ही है ! लेकिन इस कहानी से हमें 3  अनमोल जीवन की शिक्षा मिलती हैं ! 

दोस्तों अब थोड़ी पहेली की बात ,  आप बता सकते हैं की वो 3 अनमोल शिक्षा कोन  सी हैं ! अपनी अगली post में मैं वो 3 शिक्षा आपको बताऊंगा जो उस लोककथा में मैंने पढ़ी थीं ! 
लेकिन दोस्तों हो सकता है ,की उन 3 के आलावा भी कोई और अनमोल शिक्षा इसमें छुपी हो ,जो उस लोककथा के लेखक को नजर ना आई हो ,लेकिन  आप की पारखी नजरों से वो बच  ना पाई  हो ,है ना ?

तो देर किस बात की , लड़ाइए अपना दिमाग और मुझे बताइये अपने comments के द्वारा ,शायद कोई और काम की बात पता चले !
वैसे दोस्तों ,वो तीनो सलाह या शिक्षाएँ जीवन में सच में अनमोल हैं ! 
पहले आने वाले 3 सही उत्तरों को आपके नाम और आपके शहर के नाम के साथ अगली पोस्ट में प्रकाशित करूँगा ! 

All the best .........


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