may14

शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

रुको मत ,आगे बढ चलो ........


दोस्तों जीवन चलने  का नाम ,चलते  रहो सुबहो  शाम  ! 

  ये गाना तो आप सबने सुना ही होगा !   सही ही है बच्चा जब पैदा होता है तब से उसकी यात्रा प्रारंभ होती है ,  वो जिंदगी के सफ़र मे अपने कदम बढाता है!   बचपन से किशोर ,युवा फिर बुजुर्ग  की तरफ उसकी ये यात्रा अनवरत चलती  रहती है ! 
ये सूत्र हमारे जीवन के हर पहलु पर लागू होता है!     कुछ पाने के लिए , नई उपलब्धियां हासिल करने के लिए हमें हमेशा आगे बढते रहना पड़ता है !   दोस्तों ऐसा अधिकतर होता है की हमारा मन हमारे किसी नए निर्णय का ,  नए कदम का विरोध करता है !  क्योंकि मन बदलाव पसंद  नहीं करता है ,  हम जहाँ  है, जिस परिस्थिति मे हैं ,वही पर ही मन हमें सन्तुष्ट रहना सिखा देता है !  इसीलिए अधिकतर लोग अपना जीवन औसत रूप से ही काट देते है ! 

नदी भी सतत बहती रहती है,  इसीलिए उसका पानी साफ़ शुद्ध  और निर्मल होता है,  वही एक तालाब का पानी सडा ,बदबूदार और काई युक्त होता है , क्योंकि तालाब का पानी ठहर गया है ! और फिर  चाहे ठहरा  हुआ पानी हो या इंसान     काई  (आलस्य ,प्रमाद युक्त) तो  फिर उनपर जमा हो ही जाती है !

यहाँ हम सिर्फ पाँव से चलने  की बात नहीं कर रहे , हम बात कर रहे है जीवन के हर पहलु मे आगे बदने की ! हमें आगे बदना है सेहत कीतरफ ,शरीर और मन की ताकत  की तरफ ,अपने लक्ष्यों की तरफ ,सफलता ,ख़ुशी,सुख, उमंग आदि की तरफ ! 
दोस्तों   जिन पगडंडियों (रास्तों ) पर लोग नहीं चलते  वहां  घास उग जाती है , रखे रखे लोहे मे जंग लग जाती है  ठहरा  हुआ पानी बदबू मारता है ! बैठा ठाला मनुष्य या जानवर धीरे धीरे निकम्मा बन जाता है  और अपनी सहज विसेषताओं से हाथ धो बेठता है !  
दोस्तों वो क्या है जो हमें आगे बदने से रोकता है --वो है --
  • साहस की कमी -हम में से अधिकतर सुयोग्य और समर्थ लोग साहस ना होने की वजह से कुछ नया और बड़ा नहीं कर पाते ! अवसर रहते हुवे भी पिछड़ेपन की स्थिति मे ही पड़े रहते हैं!          
  • आलस्य ,प्रमाद --ये दो ऐसे ब्रेक हैं जो आपके जीवन की गाडी के पहियों को रोक देते हैं उन्हें आगे नहीं बढने देते !   
  • अज्ञात का डर -जो गोताखोर  अज्ञात समुद्र मे गोता लगाता है , मोती और अनमोल सम्पदा तो उसे ही मिलती है, किनारे पर कांटा डाल कर बेठने वाले को तो सिर्फ मछली ही हाथ आती है ,और कभी कभी तो वो भी नहीं !
योजनाबद्ध दिनचर्या  अपना कर जो अनवरत परिश्रम में लगे रहते हैं, उनका स्वास्थ्य सुद्रढ़ रहता है ,  बुद्धिमता बढती है और बुराइयों से बचे रहने का अवसर मिलता है!

जब हमारे अन्दर साहस खोया बैठा रहता है ,पराक्रम नहीं जागता ,  तो सत्प्रेरणा  नया जीवन ,नया सन्देश लेकर आती है !  उस दिन लहर बड़ी उदास और निराश बेठी थी ! समुद्र उसे आगे बढने और बिखरने के लिए कह रहा था , किन्तु वह डर रही थी !   वह इतने मे ही संतुस्थ  रहना चाहती थी ! समुद्र ने उसे समझाया , आगे बड़ो !    मिलन का आनंद जड़ता मे नहीं   गति मे है !  लहर अनिश्चितता की कल्पना से भयभीत हो रही थी !
समुद्र गंभीर हो गया  उसने कहा -   देखती नहीं मेरे अन्दर कितना दर्द है !  उस दर्द मे हिस्सा बटाए बिना तुम कैसे मेरी प्रियतमा बन सकती हो ? उससे अगली लहर ने समझाया और बोली - सखी,बिछुड़कर ही हम अनंत की और बढ रहे हैं ,सीमित से असीमित बनकर हमने प्रणय की सरसता को खोया नहीं ,बढाया ही तो है !  चर्चा बड़ी मधुर थी सुनकर महकती गंध भी वहा आ गयी और बोली -फूल की गरिमा को  जगत मे फेलाते हुवे बिछुरन का नहीं, पुलकन का अनुभव करती हूँ , तुम क्यों रुक बेठने के लिए मचल रही हो !
समुद्र इस चर्चा को शांत चित्त  सुन रहा था !   इतने मे इन्द्र ने द्वार खटखटाया और कहा -  चलने  मे विलम्ब ना करो , दुनिया तुम्हारी प्रतीक्षा मे कब से बेठी है ! मेघ का वाहन तैयार था,समुद्र इन्द्र के इशारे पर सुदूर यात्रा पर चल पड़ा !  गमन का त्याग रने पर सडन हाथ लगता है ! लहर की आँख खुली और उसने चलना  प्रारंभ कर दिया !

कछुवे ने खरगोश से बाजी जीती थी , चींटी धीरे धीरे किन्तु अनवरत श्रम करके बोझ लिए पर्वत शिखर पर जा पहुँचती है !  यदि लगन सच्ची हो,संकल्प बल दृढ हो एवं श्रम करते रहने पर भी निरंतरता और धेर्य रखे रहने का गुण मनुष्य मे हो तो भले ही प्रगति की गति धीमी हो ,सफलता अंतत मिलकर ही रहती है!

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