may14

शनिवार, 15 सितंबर 2012

पर उपदेश कुशल बहुतेरे ...



                               पर उपदेश कुशल बहुतेरे ...


दोस्तों ,ये कहावत आपने अक्सर सुनी होगी !   इसका आशय है की दूसरों को ज्ञान देना बहुत आसान है !  लेकिन खुद अमल करना उतना ही मुश्किल !   हम आज उस समाज मे रह रहे हैं  जहाँ हर कोई एक दुसरे को ज्ञान देने पर तुला है !  जहाँ उपदेश देने वालों की भी कमी नहीं है , वहीँ उपदेश सुनने वाले भी बहुत हैं !  उपदेश दिए भी जा रहे हैं ,उपदेश लिए भी जा रहे हैं ,लेकिन उन पर अमल कोई नहीं कर रहा ! 

ऐसा अधिकतर होता है की किसी को परेशानी मे देख  बजाए उसका दुःख बांटने के हम उसे उपदेश देने लग जाते हैं !   किसी की छोटी सी गलती हमे अक्षम्य लगती है , लेकिन हमारी बड़ी से बड़ी गलती पर भी हम ये बर्दाश्त नहीं कर पाते की कोई हमे कुछ कह भी दे !

 सामने वाले का हाथ भी कट जाए तो उसे भी हम ज्ञान देने से नहीं चूकते ,'  क्यों चिल्ला रहा है ?  हाथ ही तो कटा है !  कोनसा पहाड़ टूट गया ! सही हो जाएगा !  क्या कमजोर आदमी है !  जरा होसला रख !   लेकिन वहीँ हमे जरा सी एक सुई भी चुभ जाए फिर देखिये सारा आसमान हम सर पर उठा लेते हैं !
एक सच्चा इंसान वही है जो वो अपनाता है ,वही दूसरों को बतलाता है ! 

एक बार एक बहुत बड़े महात्मा थे !  रोज उनके पास सेंकडों लोग  प्रवचन सुनने आते थे !  महात्मा जी भी खूब ज्ञान ,ध्यान की बातें उनको बताते थे !  उनकी समस्याओं का समाधान करते थे !  मोह माया से दूर रहने का उपदेश देते थे !  एक बार गाँव मे एक व्यक्ति का जवान बेटा मर गया ! उस व्यक्ति पर तो दुखों का पहाड़ टूट पड़ा !  रो रो कर उसका बुरा हाल हो गया !  वो अपनी सुध बुध खो बेठा !   उसकी ऐसी अवस्था देख गाँव के लोगों ने महात्मा जी से कहा !  महात्मा जी उसके घर गए , उसको समझाया , उपदेश दिया ,"बेटा ,दुनिया तो आनी -जानी  है , जो आया है वो तो जाएगा भी !  शरीर तो नश्वर है ,आत्मा अमर है !  मोह माया व्यर्थ है ! अपने को मजबूत बनाओ ,इस दुःख से बाहर निकलो !   ऐसे जरा सी बात पर ऐसे रोना चिल्लाना अच्छा नहीं है ! 
महात्मा जी के उपदेश और प्रवचनों को सुन कर वह आदमी थोडा सही हुआ !  उसने अपनी भावनाओं को काबू मे किया !  महात्मा जी को प्रणाम कर बोला , आपने मेरी आँखें खोल दी!  मुझे दुःख से निकलने का रास्ता बता दिया !  महात्मा जी के भक्तों की संख्या मे एक का इजाफा हो गया ! वो रोज महात्मा जी के दर्शन के लिए जाने लगा !
एक दिन जब वो दर्शन के लिए गया तो देखा ,महात्मा जी बुरी तरह दहाड़े मार कर रो रहे हैं !  छाती पीट रहे हैं !  आंसू बह बह कर उनकी दाड़ी को गीला किये जा रहे हैं !  लोगों का हुजूम महात्मा जी को घेरे खड़ा है !  उसने अपने पास खड़े व्यक्ति से पूछा ,'क्या हुआ भाई , ये महात्मा जी ऐसे क्यों रो रहे हैं ?   उसने कहा ,"देखता नहीं , सामने महात्मा जी की बकरी मरी पड़ी है !   उस आदमी को बड़ा आश्चर्य  हुआ ! वो महात्मा जी के पास गया और बोला  ,"महात्मा जी ,आपको यूँ एक बकरी के लिए रोना चिल्लाना शोभा नहीं देता !  उस दिन मेरे लड़के के मरने पर आप मुझे मोह माया से दूर रहने का उपदेश दे रहे  थे !  और आज एक बकरी के लिए आप पछाड़ खा कर रो रहे हैं ?
तब महात्मा जी ने रोते हुए कहा ,"अरे भाई ,लड़का तो तेरा था ,पर   बकरी तो मेरी थी !   


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