दोस्तों महाभारत आज भी जारी है हमारे मन मे ! आज भी अर्जुन यानी हम मोहग्रस्त है ! मन हमे अपने कर्त्तव्य पथ से पीछे खींच रहा है ! आलस और डर हमे कर्त्तव्य पथ पर आरूढ़ नहीं होने दे रहे हैं ! दुर्बलता हम पर हावी हो रही है ! काम से ज्यादा उसके परिणाम की चिंता हमे खाए जा रही है ! मन जकड रहा है , तन निढाल है ! सामने कामों का पहाड़ है ! अवसर हाथ से निकला जा रहा हैं ! हम चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं ! है ना ?
उठिए , हताशा छोड़िये, गीता के वचनों से अपने आप को चार्ज कीजिये और चल पड़िए अपने लक्ष्य की तरफ , जल्दी कीजिये समय हाथ से रेत की तरह फिसला जा रहा है ................
कुरुक्षेत्र के मैदान मे कोरवों और पांडवों की सेनायें आमने -सामने आ चुकी थी ! युद्ध प्रारंभ होने ही वाला था ! पांडवों की कमान अर्जुन के हाथों मे थी ! तभी सामने कोरवों की सेना मे अपने पितामह भीष्म , गुरु द्रोणाचार्य , कृपाचार्य, और अपने कोरव भाइयों को देख कर अर्जुन अचानक मोहग्रस्त हो गया , उसका मनोबल कमजोर पड़ने लगा , मन पलायनवादी होने लगा ! सात अक्षोहिनी सेनाओं का महाबली केवट विकलता के क्षण मे पतवार फ़ेंक नौका को मझधार मे छोड़कर पलायन करने को तत्पर हो उठा !
कातर अर्जुन अपने सारथि श्री कृष्ण से गुहार कर उठा --- "केशव ,मुझे ये राज्य नहीं चाहिये ! मुझे विजय नहीं चाहिये ! मुझे सुख नहीं चाहिये ! मुझे कुछ नहीं चाहिये ! मै अपने बंधुओं को नहीं मार सकता ! मैं युद्ध नहीं कर सकता ! मैं युद्ध नहीं करूँगा .........!
निर्णय के इन क्षणों मे अर्जुन की ऐसी कायरता और हताशा को देख पार्थसारथी विस्मय से भर अर्जुन को फटकार उठे -----
"असमय ऐसी क्लीवता ! ऐसा तो कोई श्रेष्ठ वीर नहीं करता ! ऐसे आचरण से तू स्वर्ग पाना चाहता है ? हृदय की यह कैसी अनुचित दुर्बलता ! छोड़ दे , छोड़ दे , पार्थ मन की इस तुच्छ दुर्बलता को छोड़ दे ! और हुंकार कर उठ खड़ा हो वीरों की भांति युद्ध करने ! "
व्याकुल अर्जुन ने वेदना से भरे स्वर मे कहा -- ,'मधुसुदन ! पितामह और गुरुवर! मै इन पर बाण कैसे चलाऊंगा ? नहीं माधव ! नहीं ! असंभव ! मै भिक्षा मांग कर अपना जीवन चला लूँगा पर युद्ध नहीं करूँगा !
"पार्थ भयभीत ना हो ! मृत्यु से भयभीत ना हो ! तू सोचता है की अपने पितामह .गुरु और बंधुओं का वध यदि तू करेगा तो ही वे मृत्यु को प्राप्त होंगे ! और यदि तू उनका वध नहीं करेगा तो ये चिरायु हो जाएंगे ? कितना बड़ा भ्रम है तेरा अर्जुन ! यह स्पष्ट समझ ले ,हर मनुष्य अपने कर्मफल के अनुसार मृत्युवरण करता है ! तू किसी की मृत्यु का कारण नहीं ! पार्थ तू मात्र निमित्त है ..........!
कर्म कर ! किन्तु परिणाम मे आसक्ति मत रख ! जय-पराजय जैसे कर्मफल से मुक्त होकर अपना कर्त्तव्य पालन कर !
करना है इसलिए कर !
कर्म के लिए कर्म कर , फल के लिए नहीं !
निर्विकार और निरपेक्ष भाव से कर्म कर !
यह मत सोच की कर्म का कर्ता तू है ! स्वयं को कर्म मे लिप्त ना कर क्योंकि तू करने वाला नहीं है !
तू सोचता है की तू अपनी इच्छा से जो चाहे कर लेगा , तो यह तेरा भ्रम है ! जो तू चाहेगा वो ना होगा और जो ना चाहेगा वो हो जाएगा ! क्योंकि नियामक तू नहीं ! तू पूरी शक्ति से चाह कर भी किसी को मार नहीं सकता और ना चाह कर भी तू मारेगा !
इसलिए अपने मन से अहंकार को निकाल दे कि तू कर्ता है ! अतः अनासक्त भाव से अपना कर्त्तव्य पूरा कर ! परिणाम पर मत जा ! फल पर मत जा !
पार्थ ! यदि तू ईश्वर की उपासना करना चाहता है तो अपने कर्मों के द्वारा ही कर ! समर्पित कर दे अपने समस्त कर्म ईश्वर को ! जल मे रह कर भी जैसे कमल पत्र जल से ऊपर रहता है , उसी प्रकार कर्म करते हुए भी तू कमल पत्र की तरह कर्म से ऊपर उठा रह ......!
मै ही महाकाल हूँ अर्जुन ? जो आज दिखाई देता है , वह कल ना रहेगा !
इसलिए तू उठ , खड़ा हो ! समय को पहचान और यशस्वी बन !
पार्थ ! मोह ,ममता ,संकोच ,डर सब त्याग दे ! यदि त्याग ना सके तो अपनी ये दोष दुर्बलताएँ मुझे सोंप दे !
आज तेरे सामने उज्जवल भविष्य का द्वार खुला हुआ है ! भाग्यवान मनुष्य ही ऐसा स्वर्ण अवसर पाते हैं ! और तू स्वर्ग द्वार पर पहुँच कर भी पलायन करना चाहता है ?
सोभाग्यशाली वीर ! उठ खड़ा हो , क्योंकि आज आत्मिक उन्नति भी तेरी मुट्ठी मे है और भोतिक प्रगति भी तेरी मुट्ठी मे है ,यश भी तेरी मुट्ठी मे है ! उठा ले लाभ इस पवित्र अवसर का !
उठ जा ! खड़ा हो जा ! गांडीव धारण कर ! युद्ध कर !
अर्जुन कर्मपथ पर दृढ चरणों से शिला के सामान खड़े हो चुके थे ! नेत्रों मे ज्वाला थी ! हाथों मे गांडीव और गांडीव मे टंकार ! उनके अधरों से एक दृढ स्वर निकला "करिष्ये वचनं तव "
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ये आर्टिकल पूज्य गुरुदेव के ज्ञान के सागर की कुछ बूँदें हैं !
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यह भी देखें ---geeta saar in hindi -2
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यह भी देखें ---geeta saar in hindi -2
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